अथ श्री बुधस्तोत्रम् ।। Budha Graha Stotram.
अथ विनियोगः – अस्य श्रीबुधस्तोत्रमहामन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः। बुधो देवता। बुधप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
अथ ध्यानम् ।।
भुजैश्चतुर्भिर्वरदाभयासिगदं वहन्तं सुमुखं प्रशान्तम् ।
पीतप्रभं चन्द्रसुतं सुरेढ्यं सिम्हे निषण्णं बुधमाश्रयामि ॥
अथ स्तोत्रम् ।।
पीताम्बरः पीतवपुः पीतध्वजरथस्थितः ।
पीयूषरश्मितनयः पातु मां सर्वदा बुधः ॥ १॥
सिंहवाहं सिद्धनुतं सौम्यं सौम्यगुणान्वितम् ।
सोमसूनुं सुराराध्यं सर्वदं सौम्यमाश्रये ॥ २॥
बुधं बुद्धिप्रदातारं बाणबाणासनोज्ज्वलम् ।
भद्रप्रदं भीतिहरं भक्तपालनमाश्रये ॥ ३॥
आत्रेयगोत्रसञ्जातमाश्रितार्तिनिवारणम् ।
आदितेयकुलाराध्यमाशुसिद्धिदमाश्रये ॥ ४॥
कलानिधितनूजातं करुणारसवारिधिम् ।
कल्याणदायिनं नित्यं कन्याराश्यधिपं भजे ॥ ५॥
मन्दस्मितमुखाम्भोजं मन्मथायुतसुन्दरम् ।
मिथुनाधीशमनघं मृगाङ्कतनयं भजे ॥ ६॥
चतुर्भुजं चारुरूपं चराचरजगत्प्रभुम् ।
चर्मखड्गधरं वन्दे चन्द्रग्रहतनूभवम् ॥ ७॥
पञ्चास्यवाहनगतं पञ्चपातकनाशनम् ।
पीतगन्धं पीतमाल्यं बुधं बुधनुतं भजे ॥ ८॥
बुधस्तोत्रमिदं गुह्यं वसिष्ठेनोदितं पुरा ।
यः पठेच्छृणूयाद्वापि सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् ॥ ९॥
।। इति बुधस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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