जन्म कुण्डली से इनकम के योग जानें।।

Horoscope Me income Yoga
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ज्योतिष में इनकम के योग एवं कैसे जाने की हमारी आमदनी कब और कितनी बढ़ सकती है?।। Horoscope Me income Yoga.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz.

मित्रों, किसी की भी जन्मपत्री से व्यक्ति के जीवन में होनेवाले प्रगत्ति और उन्नती को जाना जा सकता है। कुण्डली में ग्यारहवाँ भाव जिसे आमदनी का भाव अर्थात लाभ भाव कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार इस भाव पर उच्च के ग्रहों का आना अथवा देखना जातक को अच्छी सफलता दिलाता है।।

थोडा़ और सूक्ष्म अध्ययन के लिये नवांश कुण्डली को भी देखें। व्यवसाय में उन्नति अथवा किसी भी कार्यक्षेत्र से आमदनी कब बढ़ेगा इसके समय सीमा को जानने के लिये फिर हमें जातक की दशमांश कुण्डली भी देखनी पड़ेगी।।

मित्रों, कार्यक्षेत्र के लिए दशम भाव एवं दशमेश का सर्वाधिक महत्व होता है। लेकिन वर्ग कुण्डलियों से जो ग्रह दशम या एकादश भाव या भावेश विशेष संबध बनाते है, उन ग्रहों की दशा, अन्तर्दशा में जातक को उन्नति मिलने की सम्पूर्ण संभावना होती है। इसी प्रकार जो ग्रह पूर्ण बलवान है या फिर कुण्डली का अत्यंत शुभ ग्रह है, तो उसकी दशा में पदोन्नती निश्चित होती ही है।।

कुण्डली में लग्नेश, दशमेश व उच्च ग्रहों की दशाएं व्यक्ति को जीवन में ऊँचाईयाँ प्रदान करती हैं। जब इन का संबध व्यवसाय भाव या लाभ भाव के साथ होता है तो व्यक्ति को व्यवसाय में या नौकरी में सर्वाधिक उन्नती व वृद्धि प्राप्त होती ही है। इन दशाओं का संबध यदि सप्तम या सप्तमेश से हो जाये तो शुभ फलों की प्राप्ति में अधिकता आ जाती है।।

कुण्डली के दशम भाव का स्वामी नवांश कुण्डली में जिस राशि में बैठा हो उसके स्वामी के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय व उस पर बली ग्रह की दशा या ग्रहगोचर उन्नति के मार्ग को सुगम एवं आसन बनाता है। इन ग्रहों की दशा में व्यक्ति को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होते हैं।।

यदि इस समय व्यक्ति परिश्रम के द्वारा कार्यों को करने का प्रयास करे तो उसे निश्चित ही सर्वाधिक सफलता प्राप्त होती है। कुण्डली में उन्नति के योग हो एवं लग्न पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो, दशवे घर तथा ग्यारहवें घर से सम्बंधित ग्रहों की दशा हो एवं गुरु शनि का गोचर हो तो व्यक्ति को मिलने वाली उन्नति को कोई नहीं रोक सकता है।।

मित्रों, कुछ ग्रहों के योग तो व्यक्ति के बिगड़े हुए जीवन को भी संवार देते हैं। जैसे लक्ष्मी योग:-

केन्द्रमूलत्रिकोणस्थे भाग्येशे परमोच्चगे।
लग्नाधिपे बलाढ्ये च लक्ष्मीयोग इतीरित:।।26।।
गुणाभिरामो बहुदेशनाथो विद्यामहाकीर्तिरनंगरूप:।
दिगन्तविश्रान्तनृपालवन्द्यो राजाधिराजो बहुदारपुत्रः।।27।।
वृहत् पाराशरहोराशास्त्रम् – अनेकयोगाध्यायः -श्लोक – २६-२७.

अर्थ:- भाग्येश अपने परमोच्च में होकर (१/४/७/१०.) या अपने मूल त्रिकोण राशी में हो और लग्नेश पूर्ण बलवान हो तो “लक्ष्मी योग” होता है। “लक्ष्मी योग” में उत्पन्न पुरुष अनेक गुणों से युक्त, अनेक देशों का स्वामी, विद्या तथा महत्कीर्ति से युक्त, कामदेव के समान रुपवान, सभी दिशाओं में प्रसिद्ध, राजाओं से पूज्य, राजाओं का भी राजा और अनेक स्त्री, पुत्रों से युक्त होता है।।२६-२७।।

जैसे नृप योग, सरस्वती योग तथा हजारों ऐसे योग हैं, जिन्हें सूक्ष्मता से देखकर जानने की आवश्यकता है। कुछ ऐसे भी योग होते हैं, जो फल तो बहुत ही अच्छे देने के लिए तैयार हैं, जो जातक के जीवन में क्रीम पीरियड लाने में सक्षम हैं, लेकिन किसी बुरे ग्रह की कुदृष्टि के वजह से शुभ फल देनेवाले होकर भी या तो शान्त बैठे हैं या फिर अशुभ फल दे रहे हैं। इसके लिए आवश्यकता है, इन्हें जानकर इसका कोई हल्का सा साधारण उपाय करने या करवाने की फिर आपके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी।।

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