कामना पूर्ण करनेवाली माता शैलपुत्री।।

Mata Shailputri Ki Vishisht Bate
Mata Shailputri Ki Vishisht Bate

सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करनेवाली नवरात्री कि प्रथम पूज्य माता शैलपुत्री।। Mata Shailputri Ki Vishisht Bate.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, देवी माता दुर्गा के मुख्यतः नौ रूप होते हैं । देवी दुर्गा ज़ी के पहले स्वरूप को “माता शैलपुत्री” के नाम से जाना जाता है । यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है । शैलराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा । नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा ओर उपासना की जाती है ।।

माता शैलपुत्री का उपासना का प्रमुख मंत्र ।।

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥

मित्रों, श्री दुर्गा का प्रथम रूप माता श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण भगवती का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है। जिनकी आराधना से प्राणी सभी मनोवांछित फल को प्राप्त कर लेता है।।

मां दुर्गा शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र कि प्रतिपदा से नवमी तक सनातन काल से मनाया जाता रहा है। आदि-शक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में पूजा की जाती है। अत: इसे नवरात्र के नाम भी जाना जाता है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य इनकी कृपा-दृष्टि के लिए लालायित रहते हैं। यह वैदिक सनातन समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं सांसारिक इन चारों ही दृष्टिकोण से काफी महत्व है।।

माता दुर्गा के नव रूपों की आराधना का त्यौहार वर्ष में दो बार आता है। एक चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में (Chaitra Durga Puja And Ashwin Mas durga Pooja). चैत्र माह में देवी दुर्गा की पूजा बड़े ही धूम धाम से की जाती है। लेकिन आश्विन मास का विशेष महत्व होता है। दुर्गा सप्तशती में भी आश्विन माह के शारदीय नवरात्रों की महिमा का विशेष बखान किया गया है।।

दोनों मासों में दुर्गा पूजा का विधान एक जैसा ही है । दोनों ही प्रतिपदा से दशमी तिथि तक मनायी जाती है । नवरात्र पूजन के प्रथम दिन मां शैलपुत्री जी का पूजन होता है । शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है । माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं ।।

नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को “मूलाधार” चक्र में स्थित करते हैं । शैलपुत्री का पूजन करने से “मूलाधार चक्र” जागृत होता है । यहीं से योग साधना का आरंभ होता है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं । नवरात्रा का प्रारम्भ आश्विन/चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है ।।

कलश को वैदिक विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है । अत: सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है । कलश स्थापना के लिए भूमि को सिक्त यानी शुद्ध किया जाता है । भूमि की शुद्धि के लिए गाय के गोबर और गंगा-जल से भूमि को लिपा जाता है । फिर समन्त्रक वैदिक विधान से श्रेष्ठ आचार्यों कि सन्निधि में कलश कि स्थापना कि जाती है ।।

माता शैलपुत्री के पूजा कि विधि ।।

नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है । पहले दिन माँ दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है । दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं । अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है ।।

कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेंट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है । इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे ही सभी देवी-देवता की पूजा होती है । इसे जयन्ती (Jayanti) कहते हैं । जिसे इस मंत्र के साथ अर्पित किया जाता है :जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते” ।।

इसी मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं । कलश स्थापना के पश्चात देवी का आह्वान किया जाता है कि “हे मां दुर्गा हमने आपका स्वरूप जैसा सुना है उसी रूप में आपकी प्रतिमा बनवायी है आप उसमें प्रवेश कर हमारी पूजा अर्चना को स्वीकार करें” ।।

देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है । प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन और धुप,दीप, नैवेद्यादी से कि जाती हैं ।।

शैलपुत्री की ध्यान :

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥

पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

शैलपुत्री की स्तोत्र पाठ ।।

प्रथम दुर्गा त्वं हि भवसागर: तारणीम् ।
धन ऐश्वर्यदायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम् ॥

त्रिलोक जननी त्वं हि परमानंद प्रदीयमान् ।
सौभाग्यारोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम् ॥

चराचरेश्वरी त्वं हि महामोह: विनाशिन ।
मुक्तिभुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम् ॥

शैलपुत्री की कवच ।।

ओमकार: में शिर: पातु मूलाधार निवासिनी ।
ह्रींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ॥

श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत ।
फट्कार पात सर्वांगे सर्व सिद्धि फलप्रदा ॥

नवरात्री में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना/करवाना सभी वान्छित कार्यों कि सिद्धि करने वाली सिद्ध होती है । वृषभ स्थिता माता शैलपुत्री खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, भुशुंडि, कपाल तथा शंख को धारण करने वाली संपूर्ण आभूषणों से विभूषित नीलमणि के समान कांतियुक्त, दस मुख ओर दसचरण वाली हैं । इन के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है ।।

नवरात्रि में नवदुर्गा के आराधना का महत्व ।।

महाकाली की आराधना करने से साधक को कुसंस्कारों, दूर्वासनाओं तथा आसुरी वृत्तियों के साथ संग्राम कर उन्हें ख़त्म करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है । ये देवी शक्ति, आधार एवं स्थिरता की प्रतीक हैं । इसके अतिरिक्त उपरोक्त मंत्र का नित्य एक माला जप करने पर सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं । इस देवी की उपासना से जीवन में स्थिरता आती है ।।

पूजा के बाद विशेष फल प्राप्ति हेतु एक विशेष उपाय ।।

मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु सभी तरीकों से माता की पूजा के बाद नियमानुसार प्रतिपदा तिथि को नैवेद्य के रूप में गाय का घी मां को अर्पित करना चाहिए और फिर वह घी ब्राह्मण को दे देना चाहिए । मान्यता है, कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य अपने जीवन में कभी रोगी नहीं होता ।।

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