रक्त की कमी एवं मूत्र रोग के ग्रहों की स्थिति।।

Mutra Rog ke Grah Sthiti
Mutra Rog ke Grah Sthiti

रक्त की कमी, मूत्र रोग, मस्तिष्क रोग और हृदय रोग ग्रहों की किस स्थिति से होता है ।। Mutra Rog ke Grah Sthiti.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, आज हम मनुष्य शरीर में होनेवाले विभिन्न रोगों के विषय में बात करेंगे । सबसे पहले हम कुष्ठ रोग के विषय में बात करते हैं । कुष्ठ रोग का कारक राहु को माना जाता है ।।

क्योंकि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु, शनि के समान ही पापी ग्रह होता है । कुण्डली में अगर यह ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो जीवन में प्रगति को बाधित करने के अलावा कई प्रकार के रोगों से परेशान करता है ।।

राहू ग्रह का रत्न गोमेद होता है जिसे धारण करने से राहु से सम्बन्धित रोगों से बचाव एवं मुक्ति मिलती है । राहु के कारण से अक्सर पेट खराब रहता है । मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, कुष्ठ रोग उत्पन्न होता है ।।

राहु बाधा से कैंसर, गठिया, चेचक एवं प्रेत बाधा का भी सामना करना पड़ता है । गोमेद को चांदी अंगूठी में पहनना इन रोगों एवं परेशानियों में लाभप्रद होता है । रक्त की कमी एवं मूत्र रोग आदि के विषय में जानते हैं ।।

मित्रों, त्वचा सम्बन्धी रोग, हैजा, बवासीर, का कारक केतु को माना जाता है । इससे सम्बन्धित रोग और रत्न की भी बात करेंगे । वैसे केतु और राहु दोनों एक ही शरीर के दो भाग माने जाते हैं ।।

इसलिये केतु की प्रकृति भी राहु के सामन ही होता है । इसे भी क्रूर ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है । कुण्डली में केतु पाप प्रभाव में हो तो इसका रत्न लहसुनियां धारण करना चाहिए ।।

लहसुनियां धारण करने से केतु के अशुभ प्रभाव के कारण होने वाले रोगों से मुक्ति एवं राहत मिलती है । अगर शरीर में रक्त की कमी, मूत्र रोग, त्वचा सम्बन्धी रोग, हैजा, बवासीर और अजीर्ण जैसा रोग होता है ।।

अगर इन रोगों का प्रभाव आपपर हो तो यह समझ सकते हैं कि केतु का अशुभ प्रभाव आपके ऊपर हो रहा है । अगर आप इस अशुभ प्रभाव से बचना चाहते हैं तो आपको सूत्र मणि अर्थात लहसनियां पहनना चाहिए । लहसुनियां पहनने से प्रसव काल में माता को अधिक कष्ट नहीं सहना पड़ता है ।।

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