पूजन विधि प्रारंभ – पार्ट – १. Poojan Vidhi Part 1.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आज मैं आपलोगों को पूजन की प्रक्रिया के विषय में बतलाता हूँ । सबसे पहले स्नान-ध्यान करके पूजन की तैयारी जैसा मैंने पहले बताया था करके फिर शुद्धासन पर किसी श्रेष्ठ विद्वान् ब्राह्मण को बिठाएं । क्योंकि –
देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधिनस्तु देवता: ।
तन्मंत्रा: ब्रह्मणाधीनं ततो ब्राह्मण देवता: ।।
अर्थ:- सम्पूर्ण जगत देवताओं के अधीन है, देवता मन्त्रों के अधीन है और वो मन्त्र ब्राह्मणों के पास है इसलिए ब्राह्मण देवतुल्य है ।।
आप चाहे कितने भी मन्त्रों के जानकार क्यों न हों ? बुजुर्गों ने एक बात कही है, की गुरु के भी गुरु और पुरोहित के भी पुरोहित होते हैं । इसलिए ब्राह्मण का होना आवश्यक है, फिर चाहे कर्मकाण्ड आप स्वयं मंत्रोच्चार करके क्यों न करें ।।
अब सर्वप्रथम 3 बार आचमन करें – ॐ केशवाय नम: । ॐ माधवाय नम: । ॐ नारायणाय नम: ।
अब इस मन्त्र से हस्त प्रक्षालन करें – ॐ हृषीकेशाय नम: ।।
अब इसके बाद प्राणायाम करें:-
श्वास को धीमी गति से भीतर गहरा खिंचना, फिर उसे अन्दर ही थोड़ा रोकना और फिर धीरे-धीरे बाहर निकालना प्राणायाम कहलाता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति और श्रेष्ठता सांस के द्वारा अंदर खींची जा रही है । छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण-दुष्प्रवृत्तियां बुरे विचार प्रश्वास के साथ ही बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिए ।।
खींचते समय इस मन्त्र को बोलेन – ॐ भूः ओम् भुवः ओम् स्वः ओम् महः ओम् जनः ओम् तपः ओम् सत्यम् ।।
अन्दर श्वास को रोककर भगवान का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का उच्चारण करें – ॐ तःत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
श्वास छोड़ते हुए इस मन्त्र को बोलें – ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रहम भूर्भवः स्वरोम् ।।
(प्राणायाम की विधि वृहत रूप से मैं अपने अगले पोस्ट में आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करूँगा) ।।
प्राणायाम के बाद न्यास करना चाहिए ।।
इसका प्रयोजन शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश करने तथा अंतः की चेतना को जगाने के लिए है, ताकि देव पूजन जेसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बायें हाथ की हथेली में जल ले कर दाहिने हाथ की पांचों उंगलियों को उनमें भिगो कर बताये गये स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।।
ओम् वाङ्मेऽआस्येऽस्तु । ——- (मुख को)
ओम् नासोर्मेप्राणोऽस्तु । —— (नासिका के दोनों छिद्रो को)
ओम् अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु । —– (दोनों नेत्रों को)
ओम् कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । ——– (दोनों कानों को)
ओम् बाह्वोर्मे बलमस्तु । —— (दोनों बाहों को)
ओम् ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु । ——- (दोनों जंघाओं को)
ओम् अरिष्टानिमेऽङगानि तनुस्तन्वा में सह सन्तु । —– (समस्त शरीर को)
अब न्यास के बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्घ करें-
ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ।।
अर्थ:- ॐ अर्थात भगवद स्मरण पूर्वक ध्यान करें, कि हे प्रभु ! हम पवित्र हैं अथवा अपवित्र हैं, चाहे किसी भी अवस्था में हों (अर्थात् हम नहीं जानते) । लेकिन हम इतना जानते हैं, कि आपको (जिनको) पुण्डरीकाक्ष भगवान का स्मरण करते ही मनुष्य अन्दर-बाहर से पूर्णतया पवित्र हो जाता है ।।
इस मंत्र से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से शुद्ध जल के छींटें लगायें । पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।
अर्थ:- हे पृथ्वी माता ! तुमने सम्पूर्ण लोको को धारण किया है, और तुम्हें भगवान विष्णु ने धारण कर रखा है । तो हे माता तुम मुझे भी अपनी गोद में स्थान दो, मेरे आसन को पवित्र कर दो, ताकि मैं जिस आसन पर बैठकर पूजन करूँ मेरी पूजा सफल (सिद्ध) हो जाय और मुझे इसका सम्पूर्ण फल प्राप्त हो ।।
इसके बाद अपने माथे में चन्दन लगाना चाहिए । अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें:-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा ।।
रक्षा विधान:-
यज्ञादि शुभ कार्यो में आसुरी शक्तियां विघ्न उत्पन्न करती हैं । इनसे रक्षा के लिए रक्षा विधान प्रयोग किया जाता है । सभी लोग भावना करें कि दसों दिशाओं में भगवान की शक्तियां इस शुभ आयोजन और इसमें सम्मिलित लोगों का संरक्षण करेंगी ।।
बायें हाथ पर पीली सरसों (या अक्षत) और मौली (रक्षा सूत्र) रखें तथा दायें हाथ से उसे ढक लें और दायें घुटने पर रखें । निम्न मंत्र बोलें –
ॐ अपसर्पनतु ते भूता ये भूता भूमि स्थिताः ।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभे ।।
दशों दिशाओं में मंत्रोच्चार के साथ उसे फेंके ।
रक्षा सूत्र बांधने का विधान:-
अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के पुण्य कार्य के लिए व्रतशीलता धारण करूंगा, यह भाव रखें । पुरूषों तथा अविवाहित लड़कियों के दाहिने हाथ में और महिलाओं के बायें हाथ में कलावा बांधा जाता है ।।
इस मन्त्र से ब्राहमण को कलावा बांधें:-
ओम् व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोवि दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ।।
इस मन्त्र से ब्राहमण से कलावा बंधवाएं:-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
संकल्प आगे के प्रकरण में:-
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