श्री गणेश चालीसा ।।

Rina Hara Ganesha Stotram
Rina Hara Ganesha Stotram

श्री गणेश चालीसा ।। Shree Ganesh Chalisa in Hindi.

॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,
कवि वर बदन कृपाल,
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल ।

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू,
मंगल भरण करण शुभ काजू ।
जै गजबदन सदन सुखदाता,
विश्व विनायक बुद्धि विधाता ।
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन,
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।
राजत मणि मुक्तन उर माला,
स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला ।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं,
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित,
चरण पादुका मुनि मन राजित ।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता,
गौरी ललन विश्व विख्याता ।
रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे,
मूषक वाहन सोहत द्वारे।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी,
अति शुचि पावन मंगलकारी ।

एक समय गिरिराज कुमारी,
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा,
तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रुपा ।
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी,
बहु विधि सेवा करी तुम्हारी ।
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा,
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला,
बिना गर्भ धारण, यहि काला ।
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना,
पूजित प्रथम, रुप भगवाना ।
अस कहि अन्तर्धान रुप है,
पलना पर बालक स्वरुप है ।
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना,
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना|
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं,
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं,
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।
लखि अति आनन्द मंगल साजा,
देखन भी आये शनि राजा ।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं,
बालक, देखन चाहत नाहीं ।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो,
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ।
कहन लगे शनि, मन सकुचाई,
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ,
शनि सों बालक देखन कहाऊ ।
पड़तहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा,
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी,
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ।
हाहाकार मच्यो कैलाशा,
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो,
काटि चक्र सो गज शिर लाये ।
बालक के धड़ ऊपर धारयो,
प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे,
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वन दीन्हे ।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा,
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।
चले षडानन, भरमि भुलाई,
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।
चरण मातुपितु के धर लीन्हें,
तिनके सात प्रदक्षिणा कीन्हें ।
धनि गणेश कहि शिव हिय हर्ष्यो,
नभ ते सुरन सुमन बहु वर्षयो।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई,
शेष सहसमुख सके न गाई ।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी,
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा,
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।
अब प्रभु दया दीन पर कीजै,
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान,
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सनमान।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश,
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ति गणेश ।।

॥ इति श्री गणेश चालीसा समाप्त् ॥

ज्योतिष के सभी पहलू पर विस्तृत समझाकर बताया गया बहुत सा हमारा विडियो हमारे  YouTube के चैनल पर देखें । इस लिंक पर क्लिक करके हमारे सभी विडियोज को देख सकते हैं – Click Here & Watch My YouTube Channel.

इस तरह की अन्य बहुत सारी जानकारियों, ज्योतिष के बहुत से लेख, टिप्स & ट्रिक्स पढने के लिये हमारे ब्लॉग एवं वेबसाइट पर जायें तथा हमारे फेसबुक पेज को अवश्य लाइक करें, प्लीज – My facebook Page.

वास्तु विजिटिंग के लिये तथा अपनी कुण्डली दिखाकर उचित सलाह लेने एवं अपनी कुण्डली बनवाने अथवा किसी विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति के लिए संपर्क करें ।।

किसी भी तरह के पूजा-पाठ, विधी-विधान, ग्रह दोष शान्ति आदि के लिए तथा बड़े से बड़े अनुष्ठान हेतु योग्य एवं विद्वान् ब्राह्मण हमारे यहाँ उपलब्ध हैं ।।

संपर्क करें:- बालाजी ज्योतिष केन्द्र, गायत्री मंदिर के बाजु में, मेन रोड़, मन्दिर फलिया, आमली, सिलवासा ।।

WhatsAap & Call: +91 – 8690 522 111.
E-Mail :: [email protected]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here