समृद्धि तथा सिद्धियों को देनेवाली माता सिद्धिदात्री का विशिष्ट भोग।।

Siddhiyan Deti Hai Siddhidatri
Siddhiyan Deti Hai Siddhidatri

समृद्धि तथा सिद्धियों को देनेवाली माता सिद्धिदात्री का विशिष्ट भोग।। Siddhiyan Deti Hai Siddhidatri.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं । जिनका उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है । इसके अलावा मार्कंडेय पुराण एवं ब्रह्ववैवर्त पुराण में भी वर्णित है ।।

इसके अलावा इस दोनों पुराणों में और भी अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है मिलता है । जैसे

1. सर्वकामावसायिता

2. सर्वज्ञत्व

3. दूरश्रवण

4. परकायप्रवेशम्

5. वाक्‌सिद्धि

6. कल्पवृक्षत्व

7. सृष्टि

8. संहारकरणसामर्थ्य

9. अमरत्व

10 सर्वन्यायकत्व. कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है ।।

मित्रों, ये सिद्धियाँ जिन्होंने भी इस संसार में पायी है, वो भगवान की तरह पूजे गये हैं इस देश में। परन्तु इस सिद्धियों की प्राप्ति हेतु लगभग इन्सान का सबकुछ खो गया है तब इन सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। लेकिन कुछ लोगों को इन सिद्धियों से साक्षात्कार सहज ही हो गया है। जिन्हें सहज ही इन सिद्धियों की प्राप्ति हुई है वो माता दुर्गा के नवम रूप माता सिद्धिदात्री के उपासक रहे हैं।।

जी हाँ आज शारदीय नवरात्रा की नवमी तिथि है और माता सिद्धिदात्री का दिन है। यही माता सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं और इनकी पूजा से ही भक्तों को इन सिद्धियों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। माता दुर्गा की नवम शक्ति का ही नाम सिद्धिदात्री है और यही माता अपने उपासकों को सहज ही सम्पूर्ण सिद्धियों को देनेवाली हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माता इन्हीं को माना गया है।।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व इन आठ सिद्धियों को भगवान शिव ने इन्हीं माता की कृपा से प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर बने थे। इसी कारण भगवान शिव संसार में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं और इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं।।

इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प शोभायमान होता है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। आज के दिन भगवती माता सिद्धिदात्री का ध्यान-पूजन-अर्चन और बन्दन करने से भक्त का “निर्वाण चक्र” जाग्रत हो जाता है।।

मां दुर्गा शेरावाली मईया जगत के कल्याण हेतु नव रूपों में प्रकट हुई और इन नव रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का। यह देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि-सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अपनी कृपा बरसाने के लिए धारण किया था। देवता, ऋषि-मुनि, असुर, नाग और मनुष्य सभी मां के भक्त हैं।।

इनकी भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना नेह लुटाती हैं। सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष रूप से नवरात्री उपवास और पूजन के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति के उद्देश्य से हवन किया जाता है। हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा करनी चाहिए।।

हवन करते समय सभी देवी दवताओं के नाम से हवि अर्थात आहुति देनी चाहिए। सभी आवाहित देवी-देवताओं की आहुति के बाद माता के नाम अथवा नवार्ण मन्त्र से आहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत: आप सप्तशती के सभी श्लोकों से आहुति दे सकते हैं। समयाभाव में आप देवी के बीज मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” से कम से कम 108 बार हवन कर सकते हैं।।

जिस प्रकार पूजा के क्रम में भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा सबसे अंत में होती है उसी प्रकार अंत में इनके नाम से आहुति देकर सपरिवार आरती एवं क्षमा प्रार्थना करें। हवन में जो भी प्रसाद आपने चढ़ाया है उसे बाटें और जब हवन की अग्नि ठंढ़ी हो जाए तो इसे पवित्र जल में विसर्जित कर दें। यह भष्म रोग, संताप एवं ग्रह बाधा से आपकी रक्षा करता है एवं मन से सभी भयों को दूर कर देता है।।

जैसा कि पहले भी हमने बताया है, कि नवरात्रि के इन दिनों में माँ दुर्गा, माँ शारदा एवं माता महालक्ष्मी जी की पूजा बड़े धूम-धाम से पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इन दिनों में लगभग सभी सनातनी लोग देवी माँ का उपवास रखते हैं और विधिपूर्वक ढंग से आराधना एवं पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी माँ कि प्रशन्नता प्राप्त करने के लिए उपवास रखें जाते हैं।।

इससे देवी माँ की कृपा सदा ही बनी रहती है और आदि शक्ति की कृपा से ही इस संसार रूपी भव सागर को पार किया जा सकता है। सात दिनों तक उपवास रख कर आठवें दिन अष्टमी को कन्याओं का भोज करवाया जाता है। कई लोग नवमी पर भी कन्याओं को भोजन करवाते हैं क्योंकि दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिन्हें शतावरी या नारायणी भी कहा जाता है और नव दिनों की तपस्या का सम्पूर्ण फल भी यही देती हैं।।

शतावरी बल बुद्धि एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि मानी जाती है और इस औषधि को हृदय की गति तेज करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान कर माता भक्तों को को निहाल कर देती हैं। आज के पहले माता के अन्य अष्ट स्वरूपों की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना करते हैं।।

इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। माता सिद्धिदात्री की सेवा जो मनुष्य नियमपूर्वक करता है, उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। संसार के दु:खों से पीड़ित व्यक्ति को आज माता सिद्धिदात्री देवी की आराधना अवश्य करनी चाहिए।।

मित्रों, महाराज दशरथ की उपासना की सिद्धि इसी दिन भगवान् राम के जन्म से हुई थी। भगवान् राम और अन्य अवतारों की भी पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है। नवरात्रि एक ख़ास हिन्दू पर्व है जिसे न केवल भारत वर्ष अपितु अन्य देशों मे भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है नव रात्रियाँ इन नव रात्रियों और दस दिनों के दौरान देवी दुर्गा के नव रूपों की पूजा-उपासना की जाती है।।

न केवल देवी दुर्गा, अपितु देवी सरस्वती अथवा देवी महालक्ष्मी जी की भी पूजा-उपासना की जाती है। दुर्गा का शाब्दिक अर्थ सभी दुखों का नाश करने वाली होता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष मे इसे महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। माता दुर्गा जो महाशक्ति हैं, का यह पर्व आज से नहीं अपितु सनातन काल से मनाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है की सर्वप्रथम श्री रामचंद्र जी ने शारदीय नवरात्रि पूजा का आरंभ समुद्र के तट पर किया था।।

उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था। इसी दिन असत्य पर सत्य की विजय सर्व विदित है। सब जानते हैं, कि किस प्रकार भगवान श्री राम ने असत्य पर सत्य की विजय हांसिल की और तभी से दशहरा मनाया जाने लगा। मान्यता है, कि आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्रि के नव दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा करने के बाद माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री की पूजा ने ही भगवान राम को सिद्धियाँ दी और रावण जैसे दुर्धर्ष योद्धा पर राम ने विजय प्राप्त की।।

नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी ही हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है।।

सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं। देवी काली और दुर्गा सभी दुखों को दूर करने वाली और सब सुख प्रदान करने वाली है। इन दिनों में आदिशक्ति की आराधना कर इन्हें प्रशन्न किया जाता है। जिसके फलस्वरूप जीवन में नयी खुशिओं का संचार नकारात्मक भावों से छुटकारा मिलता है। देवी माता अपने भक्तों पर सहज ही रीझ जाती हैं और अपना अटूट प्यार, दुलार और स्नेह आशीर्वाद के रूप प्रदान करती हैं।।

जिसके फलस्वरूप भक्तों को अन्य किसी सहायता की आवश्यकता ही नहीं पडती और वह हर प्रकार से समर्थ और समृद्ध हो जाता है। क्योंकि माँ की करुणा का कोई पार कोई अंत नहीं है। मां सिद्धिदात्री को आज नवमी तिथि पर विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाना चाहिये। जैसे- हलवा, चने की सब्जी, पूरी, खीर और पुये-मालपूये का भोग लगाना चाहिये।।

उसके बाद उस भोग को गरीबों को दान कर देना चाहिये। इससे जीवन में हर प्रकार की सुख-शांति मिलती है। नवमी पर मां सिद्धिदात्री को आंवले का भी विशेष भोग लगाने का विधान है। नवमी के दिन माता को हलवा, पूरी बनाकर माता को भोग लगाना चाहिये और कन्याओं को श्रद्धापूर्वक भोजन कराना चाहिये।।

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