सम्पत्ति देनेवाली माता कुष्मांडा की विशिष्ट पूजा।।

Dhan Hetu Kushmanda Poojan
Dhan Hetu Kushmanda Poojan

सम्पत्ति प्राप्ति हेतु चौथे दिन माता कुष्मांडा के पूजा की विधि।। Dhan Hetu Kushmanda Poojan.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, जगतजननी जगदम्बिका माता श्री दुर्गा जी का चतुर्थ रूप माता श्री कूष्मांडा देवी हैं । अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है । नवरात्रि के नव दिनों में चतुर्थ दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है । श्री कूष्मांडा माता की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं ।।

इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध तापों से मुक्त हो जाता है । माता कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर अपनी कृपादृष्टि बनाकर रखती हैं । इनकी पूजा आराधना से मनुष्य को हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं । इन बातों का आधार दुर्गा सप्तशती को माना जाय अथवा देवी भागवत को माता कुष्मांडा वह देवी हैं, जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त सम्पूर्ण संसार स्थित है । माता कूष्माण्डा ही वह देवी हैं, जो इस सम्पूर्ण चराचर जगत की अधिष्ठात्री हैं ।।

देवी कुष्मांडा की स्तुति के लिये यह एक श्लोक प्रख्यात है….

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च ।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥

मित्रों, जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय अंधकार-ही-अंधकार था । माता कुष्मांडा जिनका मुखमंड सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है, उस समय प्रकट हुई । उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी । तब इन्हीं माता की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ । शास्त्रानुसार इस देवी का निवास सूर्यमण्डल के मध्य में है और यह सूर्य मंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं ।।

माता कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें अष्टभुजी देवी के नाम से भी जाना जाता है । देवी अपने इन आठो हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा धारण करती हैं । देवी के हाथों में कमलगट्टे की माला सदैव विद्यमान रहती है, जिससे माता अपने भक्तों के कल्याण की कामना सदैव करती रहती है । यह माला ही भक्तों को सभी प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि देने वाला कहा जाता है ।।

मित्रों, माता कुष्मांडा अपने प्रिय वाहन सिंह पर सवार रहती हैं । जो भक्त श्रद्धा पूर्वक माता कुष्मांडा की उपासना नवरात्री के चौथे दिन करता है उसके सभी प्रकार के कष्ट रोग, शोक आदि का अंत हो जाता है और उसे आयु एवं यश की प्राप्ति होती है । आदिशक्ति, सिद्धिदात्री माता दुर्गा का चतुर्थ दुर्गा माता श्री कूष्मांडा को कहा जाता है । अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है ।।

नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा और आराधना करने से व्यक्ति का अनाहत चक्र जागृत हो जाता है जिससे व्यक्ति को तरह-तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है । माता श्री कूष्मांडा जी की भक्ति से व्यक्ति आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है । नवरात्री के चौथे दिन माता कूष्माण्डा के पूजा का विधान है देवी कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने वाली सर्वाधिक शक्ति एवं प्रतिष्ठा की पात्रा हैं ।।

मित्रों, नवरात्री के चतुर्थ दिवस उपवास एवं साधनारत भक्त का मन “अनाहत चक्र” में स्थित होता है । इसलिये आज के दिन साधक को अत्यंत पवित्र और शांत मन से माता के स्वरूप को ध्यान में रखकर उनकी पूजा करनी चाहिए । कूष्माण्ड अर्थात कूम्हडा (काशीफल) को कहा जाता है और कूम्हडे की बलि माता कुष्मांडा को अति प्रिय है, इसलिये भी इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है ।।

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में लगे हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिये । फिर मन को अनाहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां से प्रार्थना करते हुए उनका ध्यान एकाग्रता पूर्वक करना चाहिये । अपनी साधना को पूर्ण करने के बाद माताजी का आशीर्वाद लेना चाहिये । इस प्रकार जो साधक पूजन और प्रयत्न करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा देवी अवश्य ही सफलता प्रदान करती हैं ।।

मित्रों, माता की कृपा हो जाय तो फिर तो व्यक्ति सभी प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है । पूजन की प्रक्रिया में सर्वप्रथम कलश में उपस्थित देवी देवताओं की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें । सभी स्थापित देवी-देवताओं की पूजा के पश्चात माता कूष्माण्डा की पूजा करें । पूजा की विधि को माताजी के ध्यान से आरम्भ करके चन्दन, धुप, दीप, नैवेद्य तथा पुष्पहार आदि से उपलब्ध सामग्रियों के अनुसार भावपूर्वक करें ।।

माताजी की पूजा के उपरांत भगवान देवाधिदेव महादेव और परम पिता ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिये । तत्पश्चात भगवान श्री हरि नारायण की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिये । भगवान शिव आपकी साधना को सफल बनाने का कार्य करते हैं तथा भगवान लक्ष्मीनारायण आपकी साधना को शीर्ष तक पहुंचाकर अतुलनीय सम्पदा का मालिक बना देते हैं ।।

अगर हो सके तो पूजनोपरान्त इस देवी कवच का पाठ अवश्य ही करें – अथ देब्याः कवचम् ।।

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