ग्रहों की दशाएं कब एवं किस प्रकार शुभ या अशुभ फल देती है।। Grah Dashaon Ka Fal.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, कुंडली में ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति और उसके प्रतिकूल परिणामों को कम करने के लिए शास्त्रों में शान्ति कर्म का विधान बताया गया है। इससे वर्तमान परिस्थितियों में परिवर्तन होने की संभावनायें बनती है।।
अपनी कुंडली के अनुसार सोंच-विचारकर यह कार्य करने से शीघ्र लाभ प्राप्ति के योग अवश्य बनते हैं। दशा-महादशाओं का फल ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं।।
अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं। आजकल विंशोत्तरी महादशा प्रणाली ही गणना में है।।
इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह की दशाओं की अवधि अलग-अलग होती है। क्रमानुसार देखें तो सूर्य – 6 वर्ष, चंद्र-10 वर्ष, मंगल – 7 वर्ष, राहु – 18 वर्ष, गुरु – 16 वर्ष, शनि-19 वर्ष, बुध – 17 वर्ष, केतु – 7 वर्ष, शुक्र – 20 वर्ष।।
जन्म के अनुसार जातक ने जिस ग्रह की महादशा में जन्म लिया है, उससे अगले क्रम में दशाएँ गिनी जाती हैं। सामान्यत: 6, 8, 12 के स्वामी के साथ उपस्थित ग्रह या 6, 8, 12 स्थान में उपस्थित ग्रहों की महादशा अच्छी फल नहीं देती है ।।
केंद्र एवं त्रिकोण में स्थित ग्रहों की दशा-महादशा अच्छा फल देती है। शुभ ग्रह की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा अशुभ फल देती है मगर पाप ग्रहों की महादशा में शुभ ग्रह की अंतर्दशा मिला-जुला फल देती है।।
पाप ग्रहों की महादशा में पाप ग्रहों की अंतर्दशा या शुभ ग्रहों में शुभ ग्रह की अंतर्दशा अच्छा फल देती है। ज्योतिष में अष्टोत्तरी और विंशोत्तरी दो प्रकार की महादशाएँ मान्य हैं।।
अष्टोत्तरी अर्थात 108 वर्षों में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं तथा विंशोत्तरी अर्थात 120 वर्ष में सारे ग्रहों की दशाएँ समाप्त होती हैं।।
भाव के अनुसार शुभ या अशुभ फल सभी ग्रह अपनी दशाओं में उपरोक्त कथनानुसार देते हैं। लग्नेश की महादशा में स्वास्थ्य अच्छा, धन-प्रतिष्ठा में वृद्धि।।
धनेश की महादशा में अर्थ लाभ मगर शरीर कष्ट, स्त्री (पत्नी) को कष्ट। तृतीयेश की महादशा में भाइयों के लिए परेशानी, लड़ाई-झगड़ा। चतुर्थेश की महादशा में घर, वाहन सुख, प्रेम-स्नेह में वृद्धि।।
पंचमेश की महादशा में धनलाभ, मान-प्रतिष्ठा, संतान सुख, माता को कष्ट। षष्ठेश की महादशा में रोग, शत्रु, भय, अपमान, संताप। सप्तमेश की महादशा में जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट एवं चिंताकारक होती है।।
अष्टमेश की महादशा में कष्ट, हानि, मृत्यु भय। नवमेश की महादशा में भाग्योदय, तीर्थयात्रा, प्रवास, माता को कष्ट। दशमेश की महादशा में राज्य से लाभ, पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति, धनागमन, प्रभाव वृद्धि, पिता को लाभ।।
लाभेश की महादशा में धनलाभ, पुत्र प्राप्ति, यश में वृद्धि एवं पिता को कष्ट। व्ययेश की महादशा में धनहानि, अपमान, पराजय, देह कष्ट एवं शत्रु पीड़ा होती है।।
अच्छे भावों के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में होने पर ही अच्छा फल दे पाते हैं। ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए पूजा एवं मंत्र जप करना-करवाना चाहिए।।
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