मंगल नहीं करेगा विवाह में अमंगल।।

MANGAL NAHIN KAREGA AMANGAL
MANGAL NAHIN KAREGA AMANGAL

मंगल अब कभी नहीं करेगा विवाह में अमंगल।। MANGAL NAHIN KAREGA AMANGAL.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, जी हाँ ! मंगल अब कभी नहीं करेगा विवाह में अमंगल । सनातन संस्कृति के अनुसार विवाह एक संस्कार है । विवाह के लिए लड़के-लड़की का उत्तम लक्षणों से युक्त होना शुभ माना गया है । परंतु ज्योतिष शास्त्रानुसार विवाह हेतु वर-वधु का कई घटकों पर खरा उतरना भी उतना ही आवश्यक है ।।
मित्रों, जिनका मंगल दोषपूर्ण हो अथवा जन्मपत्रिका में मंगल दोष हो तो ऐसे जातक को मंगलवार को पूर्ण पवित्रता के साथ हनुमान मंदिर में श्री हनुमान को मंगल ग्रह का वैदिक मंत्र बोलते हुए सिंदूर व घी के लेप करें ।।
साथ ही हनुमान जी को लाल चोला चढ़ायें, लाल फूल तथा यज्ञोपवीत के साथ गुड़ के लड्डू का भोग लगाएं । इसके बाद श्री हनुमान को गुग्गल धूप व चमेली के तेल का दीप जलाकर आरती करें ।।
मित्रों, इस प्रकार पूजन करने के उपरान्त निम्नांकित इस स्तोत्र प् ग्यारह बार पथ करें । तत्पश्चात गुड़, तांबे का बर्तन, मसूर दाल, लाल चंदन या वस्त्रादि का दान गरीबों को करें । इस विधि को ग्यारह मंगलवार को करना है, वाही मंगल आपके जीवन को हर प्रकार की खुशियों से भर देगा ।।
मंगल का वैदिक मंत्र: – ॐ अग्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्यांऽअयम्‌ । अपा गुं रेतागुं सि जिन्वति ।।
अथ श्रीसङ्कष्ट मोचन स्तोत्रम् – २. (श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं स्तोत्रम्) ।। Shri Sankashta Mochana Stotram – 2.
सिन्दूरपूररुचिरो बलवीर्यसिन्धुः
बुद्धिप्रभावनिधिरद्भुतवैभवश्रीः ।
दीनार्तिदावदहनो वरदो वरेण्यः
सङ्कष्टमोचनविभुस्तनुतां शुभं नः ॥१॥
सोत्साहलङ्घितमहार्णवपौरुषश्रीः
लङ्कापुरीप्रदहनप्रथितप्रभावः ।
घोराहवप्रमथितारिचयप्रवीरः
प्राभञ्जनिर्जयति मर्कटसार्वभौमः ॥२॥
द्रोणाचलानयनवर्णितभव्यभूतिः
श्रीरामलक्ष्मणसहायकचक्रवर्ती ।
काशीस्थदक्षिणविराजितसौधमल्लः
श्रीमारुतिर्विजयते भगवान् महेशः ॥३॥
नूनं स्मृतोऽपि ददते भजतां कपीन्द्रः
सम्पूजितो दिशति वाञ्छित-सिद्धिवृद्धिम् ।
संमोदकप्रिय उपैति परं प्रहर्षं
रामायणश्रवणतः पठतां शरण्यः ॥४॥
श्रीभारतप्रवरयुद्धरथोद्धतश्रीः
पार्थैककेतनकरालविशालमूर्तिः ।
उच्चैर्घनाघनघटाविकटाट्टहासः
श्रीकृष्णपक्षभरणः शरणं ममाऽस्तु ॥५॥
जङ्घालजङ्घ उपमातिविदूरवेगो
मुष्टिप्रहारपरिमूर्च्छितराक्षसेन्द्रः ।
श्रीरामकीर्तितपराक्रमणोद्धवश्रीः
प्राकम्पनिर्विभुरुदञ्चतु भूतये नः ॥६॥
सीतार्तिदारणपटुः प्रबलः प्रतापी
श्रीराघवेन्द्रपरिरम्भवरप्रसादः ।
वर्णीश्वरः सविधिशिक्षितकालनेमिः
पञ्चाननोऽपनयतां विपदोऽधिदेशम् ॥७॥
उद्यद्भानुसहस्रसन्निभतनुः पीताम्बरालङ्कृतः
प्रोज्ज्वालानलदीप्यमाननयनो निष्पिष्टरक्षोगणः ।
संवर्तोद्यतवारिदोद्धतरवःप्रोच्चैर्गदाविभ्रमः
श्रीमान् मारुतनन्दनः प्रतिदिनं ध्येयो विपद्भञ्जनः ॥८॥
रक्षः पिशाचभयनाशनमामयाधि
प्रोच्चैर्ज्वरापहरणं हननं रिपूणाम् ।
सम्पत्तिपुत्रकरणं विजयप्रदानं
सङ्कष्टमोचनविभोः स्तवनं नराणाम् ॥९॥
दारिद्र्यदुःखदहनं शमनं विवादे
कल्याणसाधनममङ्गलवारणाय ।
दाम्पत्यदीर्घसुखसर्वमनोरथाप्तिं
श्रीमारुतेः स्तवशतावृतिरातनोति ॥१०॥
स्तोत्रं य एतदनुवासरमाप्तकामः
श्रीमारुतिं समनुचिन्त्य पठेत् सुधीरः ।
तस्मै प्रसादसुमुखो वरवानरेन्द्रः
साक्षात्कृतो भवति शाश्वतिकः सहायः ॥११॥
सङ्कष्टमोचनस्तोत्रं शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।
महेश्वरेण रचितं मारुतेश्चरणेऽर्पितम् ॥१२॥
।। इति काशीपीठाधीश्वर जगद्गुरुशङ्कराचार्यस्वामि श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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