ग्रहण काल एवं नवरात्रि में मन्त्र सिद्धि विधि।।

Mantra Siddhi in Grahana
Mantra Siddhi in Grahana

ग्रहण काल एवं नवरात्रि में मन्त्र सिद्धि विधि।। Mantra Siddhi in Grahana for Luxurious Life.

नवरात्रि एवं ग्रहण काल में करें  मन्त्रों की सिद्धि और धन-धान्य से पूर्ण जीवन प्राप्त करें ।। Mantra Siddhi for Chandra And Surya Grahana for Luxurious Life.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, इस आर्टिकल को आज आप अन्ततक पढ़ें । तो आइये सर्वप्रथम ग्रहण में क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये इस विषय पर गम्भीरता से चिंतन करें ? और मैं इस दौरान आपलोगों को उन प्रभावी मन्त्रों के विषय में भी विस्तार से बताउँगा जिसकी सिद्धि से आप अपने जीवन को मनचाही दिशा प्रदान कर सकते हैं ।।

चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से किये गये सत्कर्मों का कई गुना ज्यादा फल होता है । कोई भी व्यक्ति ग्रहण के समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके “ॐ नमो नारायणाय” इस मंत्र का आठ हजार जप करके ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी जाय ।।

ऐसा करने से वह मेधाशक्ति और कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है । सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक “अन्धकूप” नरक में वास करता है ।।

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए । बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक भोजन कर सकते हैं ।।

ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुशा या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । पके हुआ अन्न जो बच जाय उसका त्याग करके उसे गाय, कुत्ते आदि को डाल देना चाहिए तथा स्वयं के लिए ताजा भोजन बनाना चाहिए ।।

ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग कर सकते हैं वो भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही बाकी ग्रहण के शुरूआत से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए ।।

ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं । ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर एवं कुछ दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए ।।

ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए । ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए ।।

ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है ।।

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान आदि करना चाहिए इससे अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है । ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए । बाल तथा वस्त्रादि भी नहीं निचोड़ने चाहिए एवं दंतधावन भी नहीं करना चाहिए ।।

ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्रादि का त्याग, मैथुन और भोजन ये सभी कार्य वर्जित हैं । ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय सोने से व्यक्ति रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन आदि लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है ।।

गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए । तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल होता है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए ।।

शास्त्र कहता है, कि सामान्य दिनों में किये गये पुण्यकर्मों से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना शुभफल देता है एवं सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म दस लाख गुना शुभ फलदायी होता है ।।

यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म दस करोड़ गुना शुभफलदायक होता है । ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम का भी जप किया जा सकता है, जिसकी सिद्धि हो जाती है और फिर उस सिद्धि का उपयोग हम किसी भी कार्य हेतु कर सकते हैं ।।

ऐसा न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है और साधारण जप का भी फल बहुत कम प्राप्त होता है । ग्रहण के अवसर पर किसी दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सारा पुण्य भोजन करवाने वाले प्राप्त हो जाता है ।। (स्कन्द पुराण)

भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को किसी भी कार्य हेतु नहीं खोदना चाहिए । (देवी भागवत), अस्त के समय सूर्य और चन्द्रमा को नहीं देखना चाहिए इससे किसी गम्भीर बीमारी होने का डर होता है ।।

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