मोक्षदा एकादशी व्रत कथा एवं पूजा विधि।। Mokshda Ekadashi Vrat.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं । मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर करें और मुझे बतायें कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है?।।
उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है ? कृपया मुझे बताएँ । भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है । जिसके श्रवण मात्र से ही तुम्हारा यश संसार में फैलेगा । मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है । इसका नाम मोक्षदा एकादशी है ।।
इस दिन दामोदर भगवान श्रीमन्नारायण की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए । मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी से ही इस व्रत को आरंभ किया जाता है । दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश भी मुँह में रह न जाए । हो सके तो दशमी की रात्रि को भोजन भी न करें तथा न अधिक बोलें ।।
एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें । इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें । व्रत करने वाले को किसी भी चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात नहीं करना चाहिये । स्नान के उपरान्त धूप, दीप, नैवेद्य आदि षोडश उपचारों से भगवान श्री दामोदर का पूजन करें ।।
किसी भी व्रत में रात्रि में स्त्री प्रसंग भूलकर भी नहीं करना चाहिए । हो सके तो रात्रि जागरण अर्थात रात में भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए । जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा याचना भी अवश्य करनी चाहिए । जो मनुष्य इस विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें समस्त तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है ।।
हे धर्मराज! अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ । गोकुल नाम के नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था । उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे । वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था । एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया ।।
राजा ने विद्वानों से कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है । उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ । यहाँ से तुम मुझे मुक्त करवाओ । जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूँ । चित्त में बड़ी अशांति हो रही है । मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि सब में कुछ भी सुख की प्रतीत नहीं होती मैं क्या करूँ?।।
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है । अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत अथवा कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए । उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके । एक उत्तम पुत्र वही जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है । जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते ।।
ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है । आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे । ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया । उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे । उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे । राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया । मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी । राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं ।।
लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है । ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे । फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है । उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया । उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा ।।
तब राजा ने बड़ी विनम्रता से पूछा – इसका कोई उपाय बताइए प्रभु । मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प करके दे दें । इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति हो जायेगी । मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया ।।
व्रत के उपरान्त व्रत के उपवास का पुण्य उसने अपने पिता को अर्पण कर दिया । इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो । यह कहकर स्वर्ग चले गए । मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है । इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है । यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है ।।
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