नागपंचमी पूजा मुहूर्त और इसका महत्व।। Nag panchami Vrat.
मित्रों, सावन का यह पवित्र मास भगवान शिव का प्रिय मास माना गया है। ऐसे में सावन मास की शुरुआत से अन्त तक भगवान शंकर की पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है। लेकिन, इस मास में सिर्फ शिव जी के लिए ही नहीं बल्कि उनके कंठ में निवास करने वाले नाग देवता के पूजन करने का भी विधान है। जिसे नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है, कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में नाग पंचमी इस वर्ष सोमवार 21 अगस्त 2023 को पड़ रही है।।
नाग पंचमी कब मनाई जाती है? नागों की पूजा का पर्व नाग पंचमी सावन/श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। वहीं भारत के कुछ प्रदेशों में चैत्र व भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन भी नाग पंचमी मनाई जाती है।।
मूलतः सनातन परंपरा में विभिन्न लोकों का जिक्र मिलता है। जिनमें देवलोक, पाताल लोक, स्वर्ग लोक व मृत्यु लोक सहित करीब 14 लोकों का जिक्र मिलता है। इसमें से मृत्यु लोक जहां हम मौजूद हैं इसके उपर गंधर्व लोक, नाग लोक, देवलोक आदि आते हैं। इन्हीं कारणो के चलते नागों को देव तुल्य माना जाता है। सनातन मान्यताओं में सर्पों को पौराणिक काल से ही देवता के रूप में पूजा जाता रहा है। इसलिए नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का अत्यधिक महत्व है।।
ऐसी भी मान्यता है, कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने वाले व्यक्ति को सांप के डसने का भय नहीं होता। मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के दिन सर्पों को दूध से स्नान और पूजन कर दूध पिलाने से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है। कुछ जगह इस दिन घर के प्रवेश द्वार पर नागों का चित्र बनाने की भी परम्परा है। मान्यता है, कि इससे वह घर नाग-कृपा से सुरक्षित रहता है।।
नाग देवता की पूजा।। Nag Devta Ki Pooja.
इस दिन भक्त पूजन के लिए नाग देवता के मंदिर में जाकर प्रतिमा पर दूध व् जल से अभिषेक करके, धुप-दीप जलाते हैं। साथ ही नाग देवता से प्रार्थना करते हैं। कहा जाता है, कि जो लोग नाग देवता की पूजा करते हैं, उनके परिवार को सर्प से खतरा नहीं रहता। नाग देवता की पूजा के दिन विशेष मंत्रो का उच्चारण करना अनिवार्य होता है।।
मंत्र : सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।
नाग पंचमी पर नव नाग देवताओं की पूजा का विधान है। इनमें वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक और धनंजय नामक अष्टनाग आते हैं। इनकी पूजा से भक्तों को सर्प भय से मुक्ति मिलती है। भविष्योत्तर पुराण के एक श्लोक के अनुसार…
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम्॥
अर्थात : वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय – ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं।।
शास्त्रों के अनुसार धन-समृद्धि पाने के लिए भी नाग देवता की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है, कि नाग देवता, धन की देवी मां लक्ष्मी की भी रक्षा करते हैं। इस दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग स्वरुप की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।।
नाग पंचमी व्रत व पूजन विधि।। Nag Panchami Pooja And Vrat Vidhi.
ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। ऐसे में इस दिन अष्ट नागों की पूजा प्रधान रूप से की जाती है। अष्टनागों के नाम- अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख हैं। इस दिन कई लोग शिवमंदिर में जाकर नाग देवता की पूजा करते हैं। चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें और पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिटटी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थान दिया जाता है।।
फिर हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है। उसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित किया जाता है। पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है। सुविधा की दृष्टि से किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा देकर यह दूध सर्प को पिला सकते हैं। अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।।