नवरात्र में देवी पूजा तथा व्रत की सम्पूर्ण विधि।।

Navaratra Puajan And Vrat Ki Vidhi
Navaratra Puajan And Vrat Ki Vidhi

नवरात्र में देवी पूजा का महत्त्व, नवरात्र व्रत क्यों किया जाता है? तथा व्रत की सम्पूर्ण विधि।। Navaratra Puajan And Vrat Ki Vidhi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में दुर्गम नामक एक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्माजी से वरदान मिलने के बाद चारों वेद और समस्त पुराणों के ज्ञान को लेकर कहीं छिपा दिया। जिससे समस्त वैदिक कर्म लगभग बंद सा हो गया और इस वजह से चारों ओर घोर अकाल पड़ गया। पेड़-पौधे एवं नदी-नाले सभी सूखने लगे और चारों ओर हाहाकार मच गया सभी प्राणी एवं सभी जीव जंतु मरने लगे।।

इस प्रकार सृष्टि का विनाश होता देख, सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रखकर नौ दिन तक माँ जगदंबा की आराधना की। माता जगतजननी जगदम्बा से सृष्टि को बचाने की विनती सभी ने की। तब माँ भगवती प्रशन्न होकर देवताओं को अश्वस्त कर चली गयीं तथा माता भगवती एवं असुर दुर्गम के बीच घमासान युद्ध हुआ। माँ भगवती ने दुर्गम का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया, तभी से नवदुर्गा तथा नवरात्रि के व्रत का शुभारंभ हुआ।।

नवरात्र में देवी माँ की प्रशन्नता एवं अपनी सुख-शान्ति के लिये माताजी के व्रत रखे जाते हैं। जगह-जगह पर देवी माँ की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती है। घरों में भी कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती के पाठ भी किये-करवाये जाते हैं। शारदीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक होता है। भगवती के नौ प्रमुख रूप (अवतार) हैं तथा प्रत्येक बार 9-9 दिन ही ये विशिष्ट पूजाएं की जाती हैं इसीलिए इस काल को नवरात्र कहा जाता है।।

वर्ष में चार नवरात्रियाँ होती हैं परन्तु दो बार माता भगवती की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। इनमें एक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक होता है तथा दूसरा श्राद्धपक्ष के बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक की जाती है। आश्विन मास के इन नवरात्रों को “शारदीय नवरात्र” कहा जाता है क्योंकि इस समय शरद ऋतु होती है। इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन तथा पाठ एवं व्रतोपवास किया जाता है।।

उपवास में लिखा है, कि – निराहरौ यताहारौ तन्मनस्कौ समाहितौ = अर्थात जिसे इच्छा हो वो निराहार, अल्पाहार एवं मानसिक रूप से भी उपवास कर सकता है। सामान्यतया अधिकांश लोग एक समय भोजन का व्रत धारण करते हैं। प्रतिपदा के दिन घट स्थापना के साथ ही घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन, व्रत एवं माताजी का पाठ आरम्भ किया जाता है। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलाना चाहिए इससे वर्षपर्यंत गृहस्थ जीवन में शान्ति बनी रहती है।।

दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी को पूर्ण आहुति दी जाती है। नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन करवाया जाता है। नवरात्री मूल रूप में शक्ति के पूजन का समय होता है, इसलिए नवरात्री में शक्तियों अर्थात कन्याओं की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है, कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पायी थी, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है।।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। कलश स्थापना, देवी दुर्गा की स्तुति, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध यही नवरात्री के महापर्व का मुख्य चित्रण है। हमारी संस्कृति में नवरात्री पर्व की साधना का विशेष महत्त्व होता है। नवरात्री में उस परमतत्व परमात्मा की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है।।

आश्विन मास की नवरात्री में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान विशेष रूप से होते हैं। यही वजह है, कि नवरात्री के दौरान प्रत्येक इंसान एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। वैसे तो ईश्वर का आशीर्वाद हम पर सदा ही बना रहता है, किन्तु कुछ विशेष अवसरों पर उनके प्रेम और उनकी कृपा का लाभ हमें अधिक मिलता है। पावन पर्व नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है।।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥३॥

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

प्रथम दिन शैलपुत्री, द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी, तृतीय दिवस चंद्रघंटा, कूष्माण्डा चतुर्थ दिवस, पञ्चम दिन स्कन्दमाता, षष्ठी को मा कात्यायनी, सप्तमी को कालरात्रि, अष्टमी को महागौरी और अन्त में नवमी को सिद्धिदात्री नाम से नव दिनों में माताजी का पूजन एवं साधना किया जाता है। नवरात्री के नौ दिनों तक देवी माँ के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। जो इस प्रकार है:-

प्रतिपदा तिथि- जिसमें घटस्थापना एवं माता श्री शैलपुत्री की पूजा होगी। प्रतिपदा तिथि में चंद्र दर्शन एवं माता श्री शैलपुत्री की पूजा की जाती है। द्वितीया तिथि में माता श्री ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाएगी। तृतीया तिथि, जिसमें माता श्री चंद्रघंटा देवी की पूजा होती है। चतुर्थी तिथि में माता श्री कुष्मांडा देवी की पूजा होगी। पंचमी तिथि को माता स्कन्दमाता की पूजा और षष्ठी तिथि को माता श्री कात्यायनि की पूजा की जाएगी। सप्तमी को माता श्री कालरात्रि की विशेष पूजा और साधना की जाएगी।।

अष्टमी तिथि को माता श्री महागौरी की पूजा एवं महा अष्टमी की पूजा तथा महासरस्वती की पूजा की जाएगी। नवमी तिथि को माता श्री सिद्धिदात्री की पूजा, महा नवमी पूजन, आयुध पूजा तथा पूजा-पाठ आदि की सम्पूर्ण फल प्राप्ति हेतु होम-हवन भी आज ही किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी को एवं कुछ लोग नवमी को हवन करते हैं, तो अपनी-अपनी मान्यतानुसार करना चाहिये।।

जिस दिन दशमी तिथि होती है, उसी दिन माता दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन एवं विजया दशमी तथा दशहरा का पर्व भी मनाया जाता है। नवरात्री में घट स्थापना का बहुत ही महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। कलश को सुख-समृद्धि एवं सम्पूर्ण ऐश्वर्यों को देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है।।

नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे क्रियाशील एक वैदिक ब्राह्मण के द्वारा किया जाता है। जिससे घर के सभी कष्टों एवं परेशानियों वाली उर्जा अर्थात तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शान्ति एवं समृद्धि वर्षपर्यंत बनी रहती है। महा अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन अवश्य करना चाहिये।।

कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया अर्थात एक छोटा लड़का जिसको खीर, पूरी, हलवा तथा चने की सब्जी आदि खिलाये जाते है। कन्याओं को तिलक करके हाथ में मौली बांधकर कुछ उपहार एवं कुछ दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लेकर फिर आदरपूर्वक उन्हें विदा किया जाता है।।

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