पितरों के लिए सर्वपितृ अमावस्या को क्या और क्यों करें।।

Pitru Amavasya Ko Kya Kare
Pitru Amavasya Ko Kya Kare

पितरों के लिए सर्वपितृ अमावस्या को क्या और क्यों करें।। Pitru Amavasya Ko Kya Kare.

मित्रों, अश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह संयोग 6 अक्टूबर को बन रहा है। इस अमावस्या में अपने पितरों के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए? तथा कैसे बनी यह अमावस्या तिथि? इस विषय पर भी चर्चा करेंगे। अपने समस्त पितरों के उद्धार अथवा मुक्ति हेतु एक समान्य मनुष्य का क्या कर्तब्य है? इस विषय में भी हम आज जनेंगें।।

पितृपक्ष इस वर्ष 30 सितम्बर 2023 दिन शनिवार से शुरू होकर 14 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार तक रहेगी। सर्व पितृमोक्ष अमावस्या 14 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को है। वैदिक पंचांग के अनुसार अश्विन मास की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है। श्राद्ध कर्म में इस तिथि का बड़ा महत्व माना गया है। शास्त्रों में इसे मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहा गया है। यह अमावस्या हमारे पितरों के तर्पण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्यों होता है?।।

अमावस्या तिथि मनुष्य की जन्मकुंडली में बनने वाले “पितृदोष एवं मातृदोष” से भी मुक्ति दिलाता है। इसके साथ-साथ तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध के लिए भी यह तिथि अक्षय फलदायिनी मानी गई है। शास्त्रों में इस तिथि को “सर्वपितृ श्राद्ध” तिथि भी माना गया है। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण घटना है। देवताओं के पितृगण “अग्निष्वात्त” जो सोमपथ लोक में निवास करते हैं। उनकी मानसी कन्या, “अच्छोदा” नाम की एक नदी के रूप में अवस्थित हुई।।

एक बार अच्छोदा ने एक हज़ार वर्ष तक निर्बाध तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्यशक्ति परायण देवताओं के पितृगण “अग्निष्वात्त” अच्छोदा को वरदान देने के लिए दिव्य सुदर्शन शरीर धारण कर अश्विन मास की अमावस्या के दिन उपस्थित हुए। उन पितृगणों में “अमावसु” नाम की एक अत्यंत सुंदर पितर की मनोहारी-छवि एवं यौवन और तेज देखकर “अच्छोदा” कामातुर हो गयी और उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं।।

किन्तु “अमावसु” ने “अच्छोदा” की इस काम प्रार्थना अर्थात प्रणय निवेदन को ठुकराकर अपनी अनिच्छा प्रकट कर दी। इससे अच्छोदा अति लज्जित हुई और स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरी। अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितरों ने सराहना की एवं वरदान दिया, कि यह अमावस्या की तिथि “अमावसु” के नाम से जानी जाएगी। साथ ही जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न कर पाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्ध-तर्पण एवं ब्रह्मभोज कराकर सभी बीते चौदह दिनों का पुण्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकते हैं।।

ब्रह्म भोज का है विशेष महत्व।। Brahman Bhojan Ka Mahatva.

मित्रों, इस सर्वपितृ अमावस्या के दिन ब्रह्म भोज कराकर सन्त एवं ब्राह्मणों को दक्षिणा एवं वस्त्र भेंट करने का विशेष पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इससे करवाने वाले के समस्त पितर तृप्त हो जाते हैं। साथ ही उसके वंश विस्तार एवं व्यापार में बढ़ोतरी का आशीर्वाद भी देते हैं। वह व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं का निदान प्राप्तकर जीवन शांतिपूर्ण व्यतीत करता है।।

वस्त्राभावे क्रिया नास्ति यज्ञा वेदास्तपांसि च।
तस्माद्वासांसि देयानि श्राद्धकाले विशेषतः।। (ब्रह्मपुराण २२०/१३९)

अर्थ:- वस्त्र के बिना कोई क्रिया, यज्ञ, वेदाध्ययन एवं तपस्या सफल नहीं होती। अतः श्राद्धकाल में वस्त्र का दान विशेष रूप से करना चाहिए। तभी से प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। परंतु इस मास की यह अमावस्या तिथि ‘सर्वपितृ श्राद्ध’ के रूप में भी मनाई जाती है।।

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