ऋषि पंचमी के व्रत से इस प्रकार के सभी पाप धूल जाते हैं।।

Rishi Panchami Vrat
Rishi Panchami Vrat

ऋषि पंचमी के व्रत से इस प्रकार के सभी पाप धूल जाते हैं। कैसे करें ऋषि पंचमी का व्रत।। Rishi Panchami Vrat.

मित्रों, हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषिपंचमी का व्रत मनाया जाता है। इस दिन ऋषि पंचमी के व्रत (Rishi Panchami Vrat) का विधान शास्त्रों में बताया गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस दिन ऋषियों का पूजन और वंदन किया जाता है। ऋषि पंचमी कोई त्योहार नहीं है और न ही इस दिन किसी भगवान की पूजा की जाती है।।

इस दिन सप्त ऋषियों का स्मरण कर श्रद्धा के साथ उनका पूजन किया जाता है। हमारे शास्त्रों में कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वसिष्ठ ये सात ऋषि बताए गए हैं। इन सप्त ऋषियों के निमित्त उनका स्मरण करते हुए महिलाओं के द्वारा व्रत का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है।।

ऐसा माना जाता है, कि इस व्रत के रखने से महिलाएं रजस्वला दोष से मुक्त हो जाती हैं। व्रत के साथ यदि व्रतधारी महिलाएं इस दिन गंगा स्नान करें तो उन्हें व्रत का फल कई गुणा ज्यादा फल मिल जाता है। मान्यतानुसार ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत को रखने से महिलाओं के आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक दु:खों का नाश हो जाता है। इस व्रत को करने से उपासक द्वारा जाने अनजाने में किए गए सभी पापों से उसको मुक्ति मिल जाती है।।

कैसे करें ऋषि पंचमी का व्रत।। Rishi Panchami Vrat Ka Vidhan.

मित्रों, इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रात:काल नदी अथवा सरोवर में स्नान करना चाहिए। स्नान के उपरान्त घर में अथवा नदी पर ही चौकोर मंडल का निर्माण करना चाहिए। उसमें उपर्युक्त सप्त ऋषियों के प्रतिमा (स्वर्ण, चाँदी, किसी धातु अथवा मिट्टी से भी बना सकते हैं) की स्थापना करनी चाहिए। इनकी प्रतिमाओं का नैवेद्य, पुष्प, धूप, गंध आदि से पूजन करना चाहिए। इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए उन समस्त पूज्य ऋषियों को अर्ध्य समर्पित करना चाहिए।।

कश्यपात्रिर्भरद्वाजो, विश्वामित्रश्च गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च, सप्तैते ऋषय: स्मृता:।
गृह्णन्त्वर्ध्यं मया दत्तं, तुष्टा: भवन्तु मे सदा।।

अर्थात् हे कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि और वसिष्ठ ऋष्रियों, आप सब मेरे द्वारा दिया गया अर्ध्य स्वीकार करें। और मुझ पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें। इसके बाद व्रत के अंत में शाम के समय अकृष्ट यानी पृथ्वी में जो बोया न गया हो, ऐसे शाक आदि का भोजन करना चाहिए। उसके बाद दान आदि करके निर्धनों को भोजन करवाकर प्रतिमाओं का विसर्जन कर देना चाहिए।।

ऋषि पंचमी व्रत की कथा।। Rishi Panchami Vrat katha.

भविष्यपुराण में कहा गया है, कि प्राचीनकाल में एक उत्तक नाम का ब्राह्मण था। वह अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहता था। उसको एक पुत्र और एक पुत्री थी। दोनों ही विवाह के योग्य थे। उत्तक ब्राह्मण ने सुयोग्य वर ढूंढकर अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी पुत्री अपने मायके में पिता के पास वापस आ गई।।

कहते हैं, कि एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी। तभी उसकी मां ने अचानक देखा कि उसकी पुत्री के शरीर पर स्वत: ही कई प्रकार के कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। अपनी बेटी की ऐसी दशा देखकर उत्तक की पत्नी दुखी हो गई। उसने अपने पति को बुलाया और दिखाया कि देखो हमारी बेटी को यह क्या हो रहा है। इसने ऐसा कौन सा पाप किया है जो उसको ऐसा दिन देखना पड़ रहा है।।

उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के बाद देखा कि पूर्वजन्म में उनकी पुत्री किसी ब्राह्मण की पुत्री थी। लेकिन रजस्वला के दिनों में उसने पूजा के बर्तन छू लिए थे। इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इस वजह से इस जन्म में इसके शरीर पर कीड़े पड़ गए। फिर पिता के कहने पर पुत्री ने पूरे विधि विधान के साथ ऋषि पंचमी का व्रत किया और तब जाकर उसे इस पाप से मुक्ति मिली।।

वैदिक सनातन धर्म के सभी वर्गों की महिलाएं इस व्रत को कर सकती हैं। सभी महिलाओं को यह व्रत बिना किसी संकोच के करना चाहिए। इस व्रत को करने में किसी भी वर्ग की महिलाओं के लिए कोई भी अलग विधान नहीं है। किसी के लिए भी किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध आदि नहीं है। इस व्रत को करने के लिए सभी को बताएं और अपनी वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करें।।

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