सफला एकादशी व्रत कथा एवं पूजा विधि।।

सफला एकादशी व्रत कथा एवं पूजा विधि सहित हिन्दी में ।। Safala Ekadashi Vrat Katha And Vidhi in Hindi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं । वैदिक ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्नता प्राप्त होती है । इस एकादशी के देवता भगवान श्रीमन्नारायण हैं । प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा और विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए ।।

जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरूड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं । उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है । भगवान कहते हैं, कि जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे मुझे परम प्रिय हैं ।।

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सफला एकादशी व्रत की विधि ।। Safala Ekadashi Vrat Ki Vidhi.

मित्रों, एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ एवं स्वच्छ कपड़े पहनें । इसके बाद माथे पर चंदन का तिलक लगाकर कमल अथवा अन्य फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत एवं धूप-दीप से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा और आरती करें ।।

उसके उपरान्त भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों को बोलते हुए भोग लगाएं । पूरे दिन निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) व्रत रहें । शाम को दीपदान के बाद फलाहार कर सकते हैं । रात्रि में वैष्णवों के साथ भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागरण करें ।।

सफला एकादशी व्रत माहात्म्य ।। Safala Ekadashi Vrat Mahatmya.

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सफला एकादशी की रात जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है । द्वादशी को भगवान की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के बाद ही स्वयं पारण (भोजन) करें । इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।।

सफला एकादशी व्रत कथा ।। Safala Ekadashi Vrat Katha.

मित्रों, चम्पावती नाम के एक नगर का राजा महिष्मत था, उसके पाँच पुत्र थे । महिष्मत का बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था । उसकी इस प्रकार की हरकतें देखकर राजा महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा महिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया ।।

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फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । वह एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था । एक बार अंजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया । उसने पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर ठंढ़ में कॉपता रहा ।।

सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे होश आया । उठकर वह वन में गया और बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यास्त हो चुका था । तब उसने पीपल के वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा- इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।।

ऐसा कहकर लुम्भक रातभर सोया भी नहीं । इस प्रकार अनायास ही उसने सफला एकादशी व्रत के नियमों का पालन कर लिया । उसी समय आकाशवाणी हुई -राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे । आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया । तबसे उसकी बुद्धि भी उत्तम हो गयी और भगवान विष्णु के भजन में लग गयी ।।

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उसने पंद्रह वर्षों तक सफलतापूर्वक राज्य का संचालन किया । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया । अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने भगवान विष्णु के दिब्य लोक को प्राप्त किया ।।

इस सफला एकादशी के महत्व का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को बताया है । पद्मपुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, कि- बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना सफला एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । सफला एकादशी का व्रत अपने नाम के अनुसार सभी कामों में मनोवांछित सफलता प्रदान करता है ।।

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इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है । वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात भगवान विष्णु के उत्तम लोक को प्राप्त होता है । यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है । जो भक्त सफला एकादशी का व्रत रखते हैं एवं रात्रि में जागरण तथा भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता उससे कहीं बढ़कर शुभ फलों की प्राप्ति होती है ।।

।। नारायण सभी का कल्याण करें ।।
जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
जय जय श्री राधे ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।

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