सफलता हेतु माता महागौरी की पूजा।।

Safalata Deti Mata Mahagauri
Safalata Deti Mata Mahagauri

अखण्ड सौभाग्य एवं सफलता हेतु आज माता महागौरी की पूजा एवं विशिष्ट भोग ।। Safalata Deti Mata Mahagauri.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, जगतजननी, जगदम्बा, माता दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है । दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा-उपासना का विधान है ।।

इनकी शक्ति अमोघ और तत्काल फलदायिनी एवं सिद्धिदायिनी है । इनकी उपासना से भक्तों के सभी पापों का क्षय हो जाता है और पूर्वकृत पाप भी विनष्ट हो जाते हैं ।।

Saubhagya And Safalata Hetu

माता के भक्तों को भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते । वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है ।।

मित्रों, माता महागौरी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी । जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था । देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें स्वीकार किया ।।

कहा जाता है, कि स्वयं शिव जी ने इनके शरीर को गंगा-जल से धोया था । कहते हैं, कि तब माता का स्वरुप विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण का हो गया था और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा ।।

माता महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं । देवता, ऋषि तथा मनुष्य सभी देवी के इसी रूप की प्रार्थना इस मन्त्र से करते हैं “सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते ।।”

मित्रों, माता महागौरी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है, कथा के अनुसार एक बार की बात है, कि एक शेर काफी भूखा था । वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां माता देवी उमा शिव को पति रूप में प्राप्ति हेतु तपस्या कर रही थीं ।।

देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया । इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया और देवी जब तपस्या से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गयी ।।

मित्रों, तब माता ने उसे अपना सवारी बना लिया क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी । इसलिए माता गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं ।।

अष्टमी के दिन सुहागिनी महिलाओं को अपने सुहाग की दीर्घायु एवं सफलता के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करना चाहिये । सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में माता महागौरी की मूर्ति स्थापित करें ।।

इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर माता महागौरी के यंत्र की स्थापना करें । मां सौंदर्य प्रदान करने वाली देवी हैं । हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें ।।

मां का गौर वर्ण है, इस गौर वर्ण की तुलना शंख, चन्द्रमा और कुंद के पुष्प से की गयी है । इनकी आयु आठ वर्ष की मानी जाती है यथा – ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी ।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं ।।

महागौरी की चार भुजाएं हैं तथा इनका वाहन वृषभ है । इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल विराजमान है । ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है ।।

मित्रों, नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है । माता अपने भक्तों के भीतर पल रही बुराइयों को मिटाकर उनको सद्बुद्धि एवं ज्ञान प्रदान करती है ।।

मां महागौरी की आराधना करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और उसके भीतर श्रद्धा, विश्वास एवं निष्ठा की भावनायें प्रबल होती है ।। Saubhagya And Safalata Hetu

अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है । कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए अथवा अभाव में 2 कन्याओं की भी पूजा की जा सकती है ।।

कन्याओं की आयु 2 साल से ऊपर और 10 साल से कम होनी चाहिये । भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा एवं उपहार भी देनी चाहिए ।।

मित्रों, माता महागौरी की आराधना करने से भक्तजनों को जीवन की सही राह का ज्ञान होता है । जिस राह पर चलने से जीव का कल्याण होना निश्चित हो जाता है तथा व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना लेता है ।।

जो भी साधक नवरात्रि में माता के इस रूप की आराधना करते हैं माँ उनके समस्त पापों का नाश करती है । अष्टमी के दिन व्रत रहकर मां की पूजा करने और उन्हें भोग लगाकर मां का प्रसाद ग्रहण करने से व्यक्ति के अन्दर के सारे दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं ।।

आठवें दिन का भोग – जैसा की आप जानते हैं, आठवां दिन या अष्टमी देवी महागौरी को समर्पित होता है । इस दिन भक्तजन श्रद्धा से देवी माँ को नारियल प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं ।।

आठवीं शक्ति “माँ महागौरी” हैं भगवान शिव के कहने पर माँ महाकाली ने तपस्या कर ब्रह्मदेव सें अपने लिए गौर वर्ण का वरदान माँगा था । माँ महागौरी को नारियल, खिचड़ी एवं खीर का भोग भी बहुत ही प्रिय है ।।

आज माता महागौरी को कहीं-कहीं नारियल के आलावा हलवे का भोग भी लगाया जाता है बाद में उस नारियल को किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान कर दिया जाता है ।।

मित्रों, नवरात्र के आठवें दिन हवन करना चाहिये जिसमें कंडे (गाय के गोबर के उपले) जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा आदि से हवन करना चाहिये ।।

हो सके तो नवरात्रे के दसों दिन कुँवारी कन्याओं को भोजन करायें । संभव न हो तो कम-से-कम अष्टमी के दिन तो अवश्य ही करवाना चाहिये क्योंकि इस दिन इसका विशेष महत्व होता है ।।

कन्या भोजन के बिना नवरात्रि का उपवास एवं पूजन सब अधुरा माना जाता है । अन्य ग्रंथों में नवरात्रि के अवसर पर कन्या पूजन एवं कन्या भोज को अत्यंत ही महत्वपूर्ण बताया गया है ।।

नवरात्रियों में देवी मां के सभी साधक कन्याओं को मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप मानकर उनकी पूजा करते हैं । सनातन धर्म के लोगों में सदियों से ही कन्या पूजन और कन्या भोज कराने की परंपरा चली आ रही है ।।

विशेषकर कलश स्थापना करने वालों और नवरात्री का व्रत रखने वालों के लिए कन्या भोज को तो बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है ।। Saubhagya And Safalata Hetu

मित्रों, भोजन हेतु जिन नौ बच्चियों को बुलाया जाता है उन्हें मां दुर्गा के नौ रूप मानकर ही उनकी पूजा की जाती है । कन्याओं की उम्र के अनुसार उनके नाम भी दिए गए हैं ।।

दो वर्ष की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शाम्भवी, नौ साल की कन्या को दूर्गा और 10 साल की कन्या को सुभद्रा का स्वरूप माना जाता है ।।

यही कारण है, कि कन्या भोज या कन्या पूजन के लिए 10 साल से कम उम्र की बालिकाओं को ही महत्वपूर्ण माना जाता है । इनकी पूजा से पहले सुबह स्नान करके प्रसाद में खीर, पूरी और हलवा आदि बनाकर तैयार करना चाहिए ।।

इसके बाद कन्याओं को बुलाकर शुद्ध जल से उनका पांव धोना चाहिए । कन्याओं के पांव धुलने के बाद उन्हें साफ आसन पर बैठाना चाहिए ।।

कन्याओं को भोजन परोसने से पहले मां दुर्गा का भोग लगाना चाहिए । इसके बाद प्रसाद स्वरूप में कन्याओं को उसे खिलाना चाहिए ।।

नौ कन्याओं के एक साथ एक छोटे बालक को भी भोज कराने का प्रचलन है । बालक भैरव बाबा का स्वरूप या लंगूर कहा जाता है ।।

कन्याओं को भरपेट भोजन कराने के बाद उन्हें तिलक लगाना एवं कलाई पर रक्षा बांधने का भी विधान है । कन्याओं को विदा करते समय अपनी सामर्थ्य के अनुसार अनाज, रुपया या वस्त्र भेंट करें और उनके पैर छूकर आशिर्वाद प्राप्त करें । अष्ठमी या नवमी को कन्या भोज करवाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं ।।

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