देवशयनी एकादशी व्रत कथा एवं विधि।।

Devshayani Ekadashi Vrat
Devshayani Ekadashi Vrat

देवशयनी एकादशी व्रत विधि एवं कथा सहित हिन्दी में।। Devshayani Ekadashi Vrat Vidhi And Katha Sahit in Hindi.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, नारद पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के बाद भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं। इसलिये आज भगवान नारायण की पूजा भी इस दिन खास होती है। आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान करें।।

भगवान के ध्यान के बाद एकादशी के व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयार करें। पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर अथवा प्रतिमा को स्नान करवायें या तस्वीर पर गंगाजल के छींटे दें।।

देवशयनी एकादशी व्रत की विधि एवं पूजन विधि।। Ekadashi Vrat Ki Pujan And Vidhi.

पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को सायंकाल में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए शयन करना चाहिए। एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन शांत एवं स्थिर रखना चाहिये। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें और परनिंदा से बचें।।

एकादशी को प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं। भगवान् विष्णु की पूजा में  तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें।।

व्रत के दिन किसी भी प्रकार का अन्न का आहार करना वर्जित है। निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है। यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए।।

भगवान के स्नान के बाद चन्दन से उनका तिलक करें और पुष्प-पुष्पमाला आदि चढ़ाएं। भगवान के सामने देसी घी का दीपक जलायें और जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हों उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें और उनकी आरती भी उतारें।।

एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व बताया गया है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।।

इसके बाद द्वादशी तिथि को स्नान करने के बाद भगवान को व्रत पूरा होने पर आराधना करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें। ऐसा करने से आपका व्रत पूर्ण होता है।।

जो लोग व्रत नहीं करते उनके लिए भी शास्त्रों में बताया गया है, कि वह इस दिन बैंगन, प्याज, चावल, बेसन से बनी चीजें, पान-सुपारी, लहसुन, मांस-मदिरा आदि चीजों से परहेज करें। परन्तु व्रत रखने वाले दशमी से ही विष्णु भगवान का ध्यान करें और भोग विलास से खुद को दूर रखें।।

देवशयनी एकादशी का पौराणिक महत्व।। Devshayani Ekadashi Ka Pauranik Mahatva.

मित्रों, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। देवशयनी एकादशी का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है। एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है।।

इस आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सभी मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाला है। इस व्रत को करनेवाला मनुष्य जीवन की समस्त खुशियों को सहजता से प्राप्त कर लेता है।।

देवशयनी एकादशी की कथा।। DEVSHAYNI EKADASHI KATHA.

इस एकादशी का नाम पद्मा एकादशी भी है। प्राचीन काल में मान्धाता नाम के एक सूर्यवंशी राजा थे। मांधाता चक्रवर्ती, सत्यवादी और महान प्रतापी राजा थे। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करते थे। उनकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी।।

उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ा था। परन्तु एक समय ऐसा भी आया कि राजा मांधाता के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। अन्न की भीषण कमी के कारण राज्य में त्राहि त्राहि होने लगी। बेहाल प्रजा राजा के सामने अपना दुखड़ा लेकर पहुँचने लगी। वर्षा न होने के कारण राजा के भी यज्ञ हवन कार्यों में विघ्न पड़ने लगा था।।

राजा सोचने लगे कि जब मैं ईश्वर की पूजा आराधना यज्ञ आदि कार्यों में निरंतर लगा ही रहता हूँ, तो फिर मेरे राज्य में अकाल क्यों? प्रजा के आग्रह पर राजा मान्धाता ने बहुत सोच विचार किया। राजा किसी विद्वान की खोज में निकल पड़े जो उनकी समस्या का हल बता सके। कई ऋषि-मुनियों-तपस्वियों से मिलते हुये राजा मान्धाता अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे।।

वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने भी राजा को आशीर्वाद देकर उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से अपना दुःख कह सुनाया। अकाल के प्रभाव से प्रजा को जो दुःख झेलना पड़ रहा है उसका समाधान जानने के लिए राजा ने मुनिवर से विनती की। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है।।

इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। उस शूद्र का वध ही इस समस्या का निराकरण है। इस पर राजा कहने लगा, कि महाराज मैं उस निरपराध एवं तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं।।

आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी अथवा पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी। उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारी प्रजा सुख प्राप्त करेगी।।

क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है। यह व्रत समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक इस देवशयनी अथवा पद्मा एकादशी का व्रत किया।।

इस व्रत के प्रभाव से राजा मान्धाता के राज्य में वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। इस व्रत के प्रभाव से सभी युगों में लोग अपनी-अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करते आये हैं। इस व्रत को जो भी श्रद्धापुर्वक करता है, उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है।।

।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्।।

।। नमों नारायण ।।

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