अथ श्री अङ्गारक स्तोत्रम् ।। Angaraka Stotram.
अस्य श्री अङ्गारकस्तोत्रस्य । विरूपाङ्गिरस ऋषिः । अग्निर्देवता । गायत्री छन्दः । भौमप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।
अङ्गारकः शक्तिधरो लोहिताङ्गो धरासुतः ।
कुमारो मङ्गलो भौमो महाकायो धनप्रदः ॥१॥
ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः ।
विद्युत्प्रभो व्रणकरः कामदो धनहृत् कुजः ॥२॥
सामगानप्रियो रक्तवस्त्रो रक्तायतेक्षणः ।
लोहितो रक्तवर्णश्च सर्वकर्मावबोधकः ॥३॥
रक्तमाल्यधरो हेमकुण्डली ग्रहनायकः ।
नामान्येतानि भौमस्य यः पठेत्सततं नरः ॥४॥
ऋणं तस्य च दौर्भाग्यं दारिद्र्यं च विनश्यति ।
धनं प्राप्नोति विपुलं स्त्रियं चैव मनोरमाम् ॥५॥
वंशोद्द्योतकरं पुत्रं लभते नात्र संशयः ।
योऽर्चयेदह्नि भौमस्य मङ्गलं बहुपुष्पकैः ॥६॥
सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम् ॥७॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे अङ्गारकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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