बाल ग्रह रक्षा स्तोत्रम् ।। Balak graha Raksha Stotram.
आदाय कृष्णं सन्त्रस्ता यशोदापि द्विजोत्तम ।
गोपुच्छं भ्राम्य हस्तेन बालदोषमपाकरोत् ॥१॥
गोकरीषमुपादाय नन्दगोपोऽपि मस्तके ।
कृष्णस्य प्रददौ रक्षाङ्कुर्वित्येतदुदीरयन् ॥२॥
रक्षतु त्वामशेषाणां भूतानां प्रभवो हरिः ।
यस्य नाभिसमुद्भूतपङ्कजादभवज्जगत् ॥३॥
येन दंष्ट्राग्रविधृता धारयत्यवनी जगत् ।
वराहरूपधृग्देवस्स त्वां रक्षतु केशवः ॥४॥
नखाङ्कुरविनिर्भिन्नवैरिवक्षःस्थलो विभुः ।
नृसिंहरूपी सर्वत्र रक्षतु त्वां जनार्दनः ॥५॥
वामनो रक्षतु सदा भवन्तं यः क्षणादभूत् ।
त्रिविक्रमः क्रमाक्रान्तत्रैलोक्यः स्फुरदायुधः ।
शिरस्ते पातु गोर्विदः कठं रक्षतु केशवः ।
गुह्यं सत्त्वतरं विष्णुर्जघे पादौ जनार्दनः ॥७॥
मुखश्चादूडबाहूच मनस्सर्वेन्द्रियाणि च ।
रक्षत्वव्याहतैश्वर्यस्तव नारायणोऽव्ययः ॥८॥
शङ्खचक्रगदापाणेश्शङ्खनादहताः क्षयम् ।
गच्छन्तु प्रेतकूष्माण्डराक्षसा ये तवाहिताः ॥९॥
त्वां पातु दिक्षु वैकुण्ठो विदिक्षु मधुसूदनः ।
हृषीकेशोऽम्बरे भूमौ रक्षतु त्वां महीधरः ॥१०॥
एवं कृतस्वस्त्ययनो नन्दगोपेन बालकः ।
शायितश्शकटस्याधो बालपर्यङ्किकातले ॥११॥
वनमाली गदी शार्ङ्गी शङ्खी चक्री च नन्दकी ।
श्रीमन्नारायणो विष्णुर्वासुदेवोऽभिरक्षतु ॥१२॥
।। इति बाल ग्रह रक्षा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
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