अथ श्री नवग्रह कवचम् ।। Navgraha Kavcham.
ब्रह्मोवाच:-
शिरो मे पातु मार्ताण्डो कपालं रोहिणीपतिः |
मुखमङ्गारकः पातु कण्ठश्च शशिनन्दनः |
बुद्धिं जीवः सदा पातु हृदयं भृगुनन्दनः |
जठरञ्च शनिः पातु जिह्वां मे दितिनन्दनः |
पादौ केतुः सदा पातु वाराः सर्वाङ्गमेव च |
तिथयोऽष्टौ दिशः पान्तु नक्षत्राणि वपुः सदा |
अंसौ राशिः सदा पातु योगाश्च स्थैर्यमेव च |
गुह्यं लिङ्गं सदा पान्तु सर्वे ग्रहाः शुभप्रदाः |
अणिमादीनि सर्वाणि लभते यः पठेद् ध्रुवम् ||
एतां रक्षां पठेद् यस्तु भक्त्या स प्रयतः सुधीः |
स चिरायुः सुखी पुत्री रणे च विजयी भवेत् ||
अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात् |
दारार्थी लभते भार्यां सुरूपां सुमनोहराम् |
रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् |
जले स्थले चान्तरिक्षे कारागारे विशेषतः |
यः करे धारयेन्नित्यं भयं तस्य न विद्यते |
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वङ्गनागमः |
सर्वपापैः प्रमुच्येत कवचस्य च धारणात् ||
नारी वामभुजे धृत्वा सुखैश्वर्यसमन्विता |
काकवन्ध्या जन्मवन्ध्या मृतवत्सा च या भवेत् |
बह्वपत्या जीववत्सा कवचस्य प्रसादतः ||
।। इति ग्रहयामले उत्तरखण्डे नवग्रह कवचं सम्पूर्णम् ।।
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