बनते काम बिगाड़ने वाला कुण्डली का बाधक ग्रह।। Kundali Ka Badhak Graha.
हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,
मित्रों, वैदिक ज्योतिष के अन्तर्गत अनगिनत योगों का उल्लेख मिलता है । जिनमें बहुत से योग अच्छे होते हैं तो बहुत से योग बुरे भी होते हैं । जन्मकुण्डली में अशुभ ग्रहों का निर्धारण भावों के आधार पर किया जाता है । कुछ भाव होते ऎसे हैं जो जीवन में बाधा उत्पन्न करने का ही काम करते हैं । इन भावों के स्वामियों को बाधक ग्रह कहा जाता है ।।
हर लग्न की कुण्डलियों में अलग-अलग भावों के स्वामी बाधक होते हैं । तथा इसी प्रकार हर लग्न की कुण्डलियों में अलग-अलग भावों के स्वामी शुभ फलदायी होकर जातक की मनोकामना को पूर्ण करते हैं । मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी जाती है । चर अर्थात जो सतत चलायमान, चलनेवाली होती है उसे चर राशि कहते हैं ।।
मित्रों, इसी प्रकार वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी जाती है । स्थिर अर्थात जिसमें ठहराव हो जो उछल-कूद करनेवाला न हो अर्थात शान्त रहता हो । मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनों गुणों का जिनमें समावेश हो । जन्म लग्न में स्थित राशि के आधार पर ही अन्य बाधक ग्रहों का निर्णय किया जाता है ।।
कुण्डली के जन्म लग्न में चर राशि जैसे मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हो तो एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है। वहीँ कुण्डली के जन्म लग्न में स्थिर राशि जैसे वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित हो तो नवम भाव का मालिक ग्रह बाधकेश का काम करता है। यदि कुण्डली के जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशियाँ जैसे मिथुन, कन्या, धनु या मीन बैठी हो तो सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधक ग्रह का काम करता है।।
मित्रों, सामान्यतया बहुत से आचार्यों के मत के अनुसार उपरोक्त जो बाधक भाव हैं, जैसे एकादश, नवम व सप्तम इन घरों में बैठे ग्रह भी कभी-कभी बाधक ग्रह की भूमिका अदा करते हैं। अब हम बाधक ग्रह के कारकत्वों के बारे में बात करते हैं। सामान्यतया बाधक ग्रह अथवा कोई भी ग्रह अपनी दशा-अन्तर्दशा में ही शुभ अथवा अशुभ फल देता है।।
अगर कोई ग्रह शुभ है तो अपनी ही दशा-अन्तर्दशा में शुभ फल अथवा उन्नति देता है। जबकि कोई बाधक ग्रह बाधा एवं कार्यों में रुकावट पहुंचाने का काम भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में ही करते हैं। व्यक्ति के जीवन में जब बाधक ग्रह की दशा आती है तब वह बाधक ग्रह स्वयं ही हानि पहुंचाने लगते हैं। अथवा ये ग्रह जिन भावों में बैठे होते हैं वहाँ के कारकत्वों में कमी कर देते हैं।।
मित्रों, किसी भी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में बाधक ग्रह जब उसी कुण्डली के अन्य अशुभ भावों के साथ मिलते हैं तब ज्यादा अशुभ हो जाते हैं। यही बाधक ग्रह जब जन्म कुंडली के शुभ ग्रहों के साथ मिलते हैं तब उनकी शुभता में कमी ला देते हैं । बाधक ग्रह सबसे ज्यादा अशुभ तब होते हैं, जब वह दूसरे भाव, सप्तम भाव या अष्टम भाव के स्वामी के साथ युति करते हैं।।
बाधक ग्रह अर्थात कुछ ना कुछ अरिष्ट होना निश्चित ही है। परन्तु इन अनिष्टकारी स्थितियों का निर्णय बिना गहराई से अध्ययन किये अथवा बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिये। सर्वप्रथम जन्मकुण्डली की सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचना कल्याणकारी होगा। इसीलिये जन्मकुण्डली में बाधक ग्रहों को जानने के लिये सूक्ष्मता से अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।।
मित्रों, कुण्डली का कोई भी बाधक ग्रह कब किस समय किस क्षेत्र के लिये अरिष्टकारी हो सकता है? इसके लिये भी कुण्डली का गहराई से अध्ययन आवश्यक होता है। ये निश्चित है, कि सभी कुण्डलियों में अरिष्टकारी ग्रह होते ही हैं। एकादश भाव को ज्योतिष में कुण्डली का लाभ स्थान कहा जाता है। नवम भाव को भाग्य एवं सप्तम भाव को साझेदारी, गृहस्थी एवं पत्नी स्थान भी कहा जाता है। ठीक इन्हीं विषयों पर उपरोक्त भावों से अध्ययन एवं उनका आंकलन भी किया जाता है।।
परन्तु मित्रों, ऐसा भी नहीं है, कि लाभेश की दशा या अन्तर्दशा केवल अशुभ फल ही देती है। मान्यता तो ये है, कि व्यक्ति को लाभेश की दशा-अन्तर्दशा में लाभ की प्राप्ति होती है। ऐसे में हम क्या हल निकालें कि क्या चर लग्न के जातकों को एकादशेश के बाधक होने का ही फल मिलेगा अथवा केवल लाभ-ही-लाभ मिलेगा? ज्योतिषी को बहुत ही गम्भीरता से इन विषयों पर विचार करना चाहिये बिना सोचे समझे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिये।।
मित्रों, स्थिर लग्न की कुण्डली वाले जातकों का भी ठीक इसी प्रकार देखें, तो यदि भाग्येश अशुभ फलदायी हो जाय तो उसकी जिन्दगी का क्या होगा? कारण की कुण्डली में नवमेश को सर्वाधिक शुभ एवं बलवान ग्रह माना गया है। कुण्डली का सबसे बली भाव त्रिकोण अशुभ कैसे हो सकता है? इसी प्रकार सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तो जातक के वैवाहिक जीवन का क्या होगा?।।
इस प्रकार यदि देखा जाय तो हमारे जीवन में सदा ही बाधा बनी रहगी, सुख तो होगा ही नहीं। इसलिये एक अच्छे ज्योतिषी को बाधक ग्रह के विषय में कुछ भी कहने से पहले कुण्डली का निरिक्षण अच्छी प्रकार से करना चाहिये। उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये।।
परन्तु चलते-चलते एक बात बता दूँ, कि बाधक ग्रह बाधक तो होते ही हैं। ये बाधक ग्रह और ज्यादा अशुभ तब होते हैं, जब वह दूसरे, तीसरे, सप्तम और अष्टम भाव के साथ संबंध स्थापित करते हैं। परन्तु यही ग्रह जातक को उसके जीवन की सर्वाधिक ऊँचाई (तत्सम्बन्धित) भी देते हैं। जो जितना घटक होता है वो उतना ही शुभ भी होता है। वो कहते हैं, न की जहाँ खोता है, वहीँ प्राप्त भी होता है।।
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