संतान प्राप्ति में बिलम्ब का कारण?

Putra Prapti Me Der Ka Karan
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संतान प्राप्ति में बिलम्ब का कारण एवं उपाय।। Putra Prapti Me Der Ka Karan.

हैल्लो फ्रेण्ड्सzzz,

मित्रों, प्रकृति के सिद्धान्त के अनुसार स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना से ही विवाह करते हैं । वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवं परमात्मा के इस सृष्टि की व्यवस्था को सुचारू रूप से सञ्चालन में सहयोग देने के लिए ये आवश्यक भी है । अपने जीवन में एक पुरुष पिता बनकर तथा एक स्त्री माँ बन कर ही अपने जीवन की पूर्णता का अनुभव करते हैं ।।

धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के किये गये यज्ञ, दान, तप एवं अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैं । महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है, कि – पुन्नाम् नरकात्रायते इति पुत्रः अर्थात् पुत्र ही पिता को पुत् नामक नरक में गिरने से बचाता है । मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए तैयार हुये ।।

मित्रों, हमारे प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ा ही विस्तृत वर्णन किया गया है । जातक के भाग्य में संतान सुख है या नहीं, पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा । अगर सन्तान होगी तो वो संतान कैसी होगी तथा कब होगी अर्थात् किस उम्र में सन्तान प्राप्ति का योग है ? ।।

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सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है, कि सन्तान सुख अगर नहीं है तो उसकी प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं ? और अगर कोई बाधा है भी तो उनका उपचार क्या है ? आप अपने इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुण्डली के विस्तृत व गहन अध्ययन से जान सकते हैं । तो आइये आज के हम अपने प्रसंग में इसी विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हैं और इस विषय को गहराई से जानने का प्रयास करते हैं ।।

सन्तान प्राप्ति के लिए मुख्य रूप से पञ्चम भाव, पञ्चमेश, पञ्चम भाव पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव एवं गुरु (बृहस्पति) का विचार किया जाता है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष, मिथुन, सिंह, कन्या ये चार राशियाँ अल्प प्रसव वाली राशियाँ मानी गयीं हैं । तथा वृषभ, कर्क, वृश्चिक, धनु, मीन ये बहुप्रसव वाली राशियाँ मानी हैं ।।

पञ्चम भाव में पाप ग्रह हो तो संतति सुख में बाधा आती है । परन्तु यदि अकेला राहू हो तो सुन्दर पुत्र का योग बनाता है । पञ्चमेश यदि 6, 8,12 वें घर में हो या 6, 8,12 वें घर के स्वामी पञ्चम में हो तो जातक का संतान सुख बाधित होता है । परन्तु यदि पञ्चमेश अशुभ नक्षत्र में हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है ।।

मित्रों, राहू के विषय में एक और बात कही जाती है, कि पञ्चम का राहु पहली संतान के लिए अशुभ होता है । लग्न पर पाप प्रभाव हो तो भी सन्तान संतति विलंब से होती है । लग्न, षष्ठ, सप्तम तथा अष्टम स्थान का मंगल भी संतान प्राप्ति में विलंब कराता ही है । और मित्रों ये सूत्र स्त्री-पुरुष दोनों की कुंडली में समान रूप से लागू होता है ।।

स्त्री की कुण्डली में लग्न, पञ्चम, सप्तम, भाग्य अथवा लाभ भाव में शनि हो तो भी संतान देर से होती है । जन्म कुण्डली में सूर्य-शनि की युति भी संतान प्राप्ति में विलंब और संतान से मतभेद करवाती है । प्रथम या सप्तम का मंगल (पत्नी के लिए) कष्ट से संतान प्राप्ति का सूचक होता है ।।

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पञ्चम भाव पर पापग्रहों की दृष्टि भी जातक के जीवन में संतान प्राप्ति में बिलम्ब करवाती है । अगर आपकी कुण्डली में गुरु राहु यु‍ति हो तथा पञ्चम भाव पाप प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में स्वयं के सन्तान के जगह दत्तक सन्तान का योग बनता है । मित्रों, कुण्डली में स्थित किसी भी तरह के दोषों की निवृत्ति तथा अपने जीवन में शुभ फल प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम उपाय श्रेष्ठ एवं विद्वान् ब्राह्मणों के द्वारा “ग्रह दोष शान्ति कर्म” ।।

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